________________
April-2003
21
(३) श्रीयुगादिदेवविज्ञप्तिकारूप-सुखभक्षिकागतिस्तोत्र
(राग - केदारु फाग)
श्रीसंघे वर साकर जय नृपमोदक सेव ! विमलजले बीजे सदमरकीर्तितजिनदेव ! ॥ हिङ्गलखण्डविभारुण ! ममलाप सीमदान, भविकं सार चकारतयिन पदकमलममान ॥१॥ वरसोलाघबदामय चारो लीनिमजाभ, [जन]पस्तांतिम खारिक भीत इमावसुलाभ ।। सुदमी दुष्कनिशाकर कोहलापाकर पाहि, वि(जि?)तशोकाकबली वृषखण्डर परमयशाहि ॥२॥ अखलहलांकककूलिर खरमांगतिनिद्राख, आटोपरां सदा फल करणी र्पयडा शाख । सार विचार बिदाडिम रतबत नालीकेर, अकरमदां बकपूरक महसां तनु असु बेर ॥३॥ केलांगुलि नारिंगक जम्बीरांचिततान, मति रां जाय फला लिंब कमरख नेमूस्त्वान ।। अकलिं बुधनर जां बुधिजरगोजांकिर बोर, कयरीतिकृतपरायण पीलुगतेरकठोर ॥४|| वालुरणी नविडांगर डोडाध्यान लविंग, कर्मक्षपणे गांतवनाददवत्तरसंग ।। वीतजराबमरी तेल भाजी कलमधमाल, क्षीरदहीरनृपानत सोपारीरससार ॥५॥
कलश श्रीतपगणाधिपहीरविजयगुरुगच्छभूषितबुधवरश्रीराजसागरशिष्यपण्डितसुरविसागरनामतः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org