________________ डिसेम्बर 2011 सेत्रुजसिहरि चडीय नाह कहीयं तूं अरचिसु राइणि रूंखह तलइ पाय आणंदिहिं चरचिसु / न्हवण विलेपण पूजा करी आरती ऊतारिसु रोग शोक भावठि भमण हूं दूरि निवारिसु // चंचल मन निश्चल करीय राखिसु जिण तूं नामि मण आणंदिइं मागीइए चरण शरण तुम्ह सामि // 5 / / इतिश्री आदिनाथ नमस्कार समाप्तः // केटलाक शब्दो अनन्तकाय - अनन्त आत्माओ- एक शरीर गणाती वनस्पति नरयागइ - नरक गति अजिित्ति - आर्य क्षेत्रे अट्टडाइ - 'अथडाय (?)' त्रिपति - तृप्ति