________________
अनुसंधान-२३ प्रास मेळववानी पद्धतिमां कर्ताना चित्तनी प्रसन्न स्थिति प्रतिबिम्बित थती लागे छे.
कर्ताए १६३मा पद्यमा पोतानो, अने १६२मा पद्यमा पोताना गुरुदेव 'विजयदाण' (विजयदानसूरि)नो उल्लेख को छे. १६४मा पद्यमां आवतुं 'सहजकुसलसिक्खं' पद द्विअर्थी होवार्नु अनुमान थाय छे, अने ते जो यथार्थ होय तो, 'सहजकुशल' नामना मुनिनुं नाम (ते नामना मुनिने शिक्षारूप) तेमां गुंथायुं होवानुं लागे छे.
रचना आत्मबोध-अर्थे थई होई 'आया सुही' अने 'आया दुही' एवा शब्दगुच्छ वारंवार आवता जोवा मळे छे.
श्रीसकलचन्द्रजीनी अन्य आवी रचनाओ हजी हस्तप्रतिरूपे उपलब्ध छे ज. तेमनी 'श्रुतशिक्षा' के 'धर्मशिक्षा' नाम धरावती एक महाकाय रचनानी पोथी पर, वर्षो पहेलां कोई मुनि काम करी रह्या होवानुं जाण्यु हतुं. अद्यावधि तेवू कोई सम्पादन प्रगट थयुं होवानुं जाणवामां नथी आव्युं.
'श्रुतास्वाद'नी एक हस्तप्रति, उज्जैनना श्रीचन्द्रसागरसूरिज्ञानभण्डारमां छे. तेनी जेरोक्स नकल मुनि श्रीधुरन्धरविजयजी द्वारा मने मळी छे. ६ पानांनी आ प्रतिमां 'श्रुतास्वाद' अने ते पछी श्रीविनयविजयगणिकृत 'सप्तनयगर्भित श्रीमन्महावीरपारगतस्तोत्र' (नयकणिका), एम बे कृतिओ शुद्ध प्राय अने सुन्दर अक्षरे उल्लेखी छे. प्रान्त भागे "श्रीराजनगरमध्ये सं. १७६३ वर्षे लिखितं" एम नोंध छे. हांसियामां दरेक पाने "श्रुतास्वादः" एम लखेलु छे, तेना आधारे अत्रे पण ते ज नामे संपादन आपवामां आवेल छे.
१ थी ४० द्वारोना अंको में उमेर्या छे. अने तेना आधारे दरेक द्वारना अन्ते, ज्यां द्वारक्रमांकनी गरबड जणाई छे, त्यां ते ( ) मां सुधारेल छे.
***
नमः श्रीगौतमगणभृते ॥ सिद्धत्थसुयं सिद्धं बुद्ध नमिऊण वीरमरहंतं । देमि नियअप्पसिक्खं विविहसुयस्सायसुहजणयं ॥१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org