________________ April-2003 17 सुरनरपहूण सेवा विज्जामंताइ लोयकिच्चाई / सिझंति भावओ खलु ताणं न फलं च भाव विणा // 156 // भावा भवे केवलनाणलद्धी, भावेण वा सव्वपयत्थसिद्धी / सुहावहा तेण उ भावसुद्धी सव्वाण भावा किरियाण सुद्धी / / 1576 जं सुहलेसं किच्चं अज्झवसाएण होइ जं सुद्धं / जं च सुहभावहेऊ सो धम्मो एस परमत्थो // 158|| कविलमुणी सुहभावो केवलनाणी इलाइपुत्तो य / खंदगसीसा य तहा केवलिणो ते वि सुहभावा // 159 // मासतुसो सुहभावो केवलनाणी य कूरगड्डओ / राया पसन्नचंदो सोसो तह चंडरुद्दस्स // 160 // सुहभावा मरुदेवी समराइच्चो य केवलं नाणं / पत्ता चंदणबाला मिगावई ताण तिविह नमो // 161 // (दारं 38(40)) / सन्त्राणदंसणचरित्ततवोवहाणो एयाई काममणु सिद्धिपयाइं निच्चं / चित्ते निहाणमिव जे सययं धरंति ते पाणिणो विजयदाणपयं लहंति // 162 / / निस्सापयाइं मुणिणो इय पंच काया, गच्छो सरीरममलं सुगिही सुराया / वटुंति जेहिं जिणधम्मसुरडुपाया, तेहि सया सयलचंद सुहाय जाया // 163 / / समजियसुरसुक्खं अप्पणो बोहिदक्खं दुहदुरियविपक्खं धम्मचिंतासुभिक्खं / सहजकुसलसिक्खं जो सहाणं समक्खं सुणिय धरइ दिक्खं सो सुहं जाइ मुक्खं // 164 / / इति श्रीश्रुतास्वादसूत्रम् // सकलचन्द्रोपाध्यायकृतमिति भद्रं भूयात् / यथाप्रति लिखितमिदम् // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org