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जून २००८
साधुचर्यामां आवता 'बहुवेलं' ना आदेशो परत्वे समजण आपतां कवि लखे छे : "खंजवाळवं, थूकवू, श्वास लेवा-मूकवा, इत्यादि लघु कार्यो माटे 'बहुवेलं'ना आदेश छे; बाकी तो अन्य कोई पण क्रिया के कार्य करवानां होय त्यारे दरेक वखते पूछीने-रजा लईनेज ते करवानां छे. एक काम अंगे पूछीने बे-त्रण बीजां काम पण साथे करी लेवाय नहि, एवी साधुनी मर्यादा छे" (गा. १६-१७). "गुरुनी आराधनाथी वधीने कोई अमृत नहि, अने तेमनी विराधनाथी वधीने कोई विष नथी" (गा. २८) समग्रपणे समजवालायक रचना.
१८-१९. पण्डितमरणनी अभिलाषावाळाने मार्गदर्शनरूप अढारमी 'पर्यन्ताराधनाकुलक' नामे रचना छे.
क्र. १९मी रचना 'उपदेशकुलक' ते संसारनी नश्वरता वर्णवती वैराग्योत्पादक रचना छे. कर्तार्नु समग्र संवेदन प्रधानतया वैराग्यवाहक होवार्नु आ बधी रचनाओ थकी स्पष्ट छे.
२०-२१. आ बन्ने क्रमश: नेमिनाथजिन तथा श्रीपुण्डरीकस्वामी गणधरना स्तोत्रो छे, जे वारंवार वागोळवां गमे तेवां छे.
२२. 'श्रीअणहिलपुर रथयात्रा स्तवन' शीर्षकनी आ रचनामां, रथयात्राना धार्मिक उल्लासना वर्णन उपरांत, कोई ऐतिहासिक तथ्यनोंध न होवा छतां, आ लघु रचना ऐतिहासिक एटला माटे छे के तेमां वर्णित रथयात्रा खुद कुमारपाल राजा द्वारा काढवामां आवेली होवानो तेमां इशारो सांपडे छे (गा. ५ तथा १०). मतलब के आ रचना सं. १२२९ करतां पूर्वे रचवामां आवेली छे. रथयात्रानुं वर्णन खूब उद्दीपक तथा अहोभावभर्यु थयुं छे.
२३. २४. शार्दूलविक्रीडित छन्दमां निबद्ध आ संस्कृत रचना भारतीदेवीना स्तोत्ररूप रचना छे. आमां अशुद्धिनुं प्रमाण वधु जणाय छे.
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