________________
४४
अनुसन्धान ४४
परलोयलालसेणं किंवा इह लोयमत्तसरणेणं । हियएण अहवुरोहा(अहुवरोहा ?) जह वा तहवेत्थ सीसेण ।। ३१ ।। जेण न अप्पा ठविओ नियगुरुमणपंकयम्मि भमरोव्व । किं तस्स जीविएणं जम्मेणं अहव दिक्खाए ॥ ३२ ॥ जुत्ताजुत्तवियारो गुरुआणाए न हुज्जए काउं । दइवाउ मंगुलं पुण जइ होज्जा तंपि कल्लाणं ॥ ३३ ।। सिरि धम्मसूरि पहुणो निम्मल कित्तीए भरियभुवणस्स। सिरिरयणसिंहसूरी सीसो एवं पयंपेइ ।। ३४ ॥ छ ॥ छ ।।
(१८) पर्यन्तसमयाराधनाकुलकम् सुहिओ वा दुहिओ वा थोवं जीवित्तु अह बहुं लोए । मा सो करेउ रवेयं जइ पावइ पंडियं मरणं ॥ १ ॥ जे संसारे पुव्वं मणुयभवा पाविया तएणंता । सव्वाणवि ताण अहो एसोच्चिय लहइ तिलयत्तं ॥ २ ॥ जेणेसा सामग्गी पत्ता तुमए अणंतसुहजणणी । ता धीरत्तं काउं ठावसु चंदे नियं नामं ॥ ३ ॥ परहत्थगएण तए पुव्वि रे जीव ! किं न जं सहियं । संपइ सुहडो होउं किं न ह गिण्हसि जयपडायं? ।। ४ ।। जइ पीडाए तुझं विहुरत्तं अत्थि जीव ! अइगरुयं । तहवि हु कन्नं दाउं एग चिय सुणह मह वयणं ॥ ५ ॥ अइकडुओ वि हु लिंबो अच्छी [नि]मीलित्तु साहसं काउं । खणमेगं छुटिज्जइ जह दीहं जीव(वि)यत्थीहिं ।। ६ ॥ तह सुहभावो होउं परमिट्टि सरसु कुणसु धीरत्तं । चइउं कुटुंबमोहं परिभावसु एरिसं तत्तं ।। ७ ।। जिणधम्मो मह सरणं गुरुचलणे भावओ नमसामि । सव्वजिएसुं मित्त(त्ति) नियदुच्चरियं च गरिहामि ।। ८ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org