________________
४२
अनुसन्थान ४४
गुरुयगुणेहिं सीसो अहिओ गुरुणो हवेज्ज जइ कहवि । तहवि ह आणा सीसे सीसेहि तस्स धरियव्वा ॥३॥ जइ कुणइ उग्गदंडं रूसइ लहुएवि विणयभंगमि । चोयइ फरुसगिराए ताडइ दंडेण जइ कहवि ।। ४ ।। अप्पसुहोवि सुहेसी हवइ मणागं पमायसीलोवि । तह वि हु सो सीसेहिं पूइज्जइ देवयं व गुरू ॥ ५ ॥ सोच्चिय सीसो सीसो जो नाउं इंगियं गुरुजणस्स । वट्टइ कज्जमि सया सेसो भिच्चो वयणकारी ॥ ६ ॥ जस्स गुरुम्मि न भत्ती निवसइ हिययम्मि वज्जरेहव्व । किं तस्स जीविएणं विडंबणामेत्तरूवेणं ? ।। ७ ।। पच्चक्खमह परोक्खं अवन्नवायं गुरूण जो कुज्जा । जम्मन्तरेवि दुलहं जिणिंदवयणं पुणो तस्स ।। ८ ।। जा काओ रिद्धीओ हवंति सीसाण एत्थ संसारे । गुरुभत्तिपायवाओ पुप्फसमाओ फुडं ताओ ।। ९ ।। जलपाणदायगस्सवि उवयारो नेव तीरए काउं । किं पुण भवन्नवाओ जो तारइ तस्स सुहगुरुणो ॥ १० ॥ गुरुपायरंजणत्थं जो सीसो भणइ वयणमेत्तेण । मह जीवियंपि एवं जं भत्ती तुम्ह पयमूले ॥ ११ ॥ एयं कहं कहंतो न सरइ मूढो इमंपि दिटुंतं । साहेइ पंगणं चिय घरस्स अब्भिन्तरा लच्छी ।। १२ ।। एस च्चिय परमकला एसो धम्मो इमं परं तत्तं । गुरुमाणसमणुकूलं जं किज्जइ सीसवग्गेण ।। १३ ।। जुत्तं चिय गुरुवयणं अहव अजुत्तं च होज्ज दइवाओ। तहवि हु एवं तित्थं जं हुज्जा तंपि कल्लाणं ॥ १४ ।। कि ताए रिद्धीए चोरस्स व वज्झमण्डणसमाए । गुरुयणमणं विराहिय जं सीसा कहवि वंछंति ॥ १५ ॥ कंडूयण निट्ठीवण ऊसासपमोक्खमइलहुयकज्जं । बहुवेलाए पुच्छिय अन्नं पुच्छेज्ज पत्तेयं ।। १६ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org