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संपइ सत्थसरीरे सुमरंति न जीव ! पुव्वदुक्खाई । कहिएसु न उव्वेओ कह होसि तं न याणामि ॥ २२ ॥ जाणियतत्तंपि मणो धारिज्जइ दुक्करं सरलमग्गे । दुक्खं खु सिक्खविज्जइ एसो अप्पा दुरप्पा हु ॥ २३ ॥ आवडिए जिय ! दुक्खे जाणसि किर सुंदरी हवइ धम्मो । संपइ पुण गयधम्मो परलोए होसि अहह ! कहं ॥ २४ ॥ इंदियलोलो को विहु वट्टइ सद्दाइएस विसएसु । तहवि हु न होइ तित्ती तन्हच्चिय वित्थरइ नवरं ॥ २५ ॥ इंदियधुत्ताण अहो तिलतुसमेत्तं पि देसु मा पसरं । अह दिन्नो तो नीओ जत्थ खणो वरिसकोडिसमो ॥ २६ ॥ धत्तूर भामिओ इव ढगचुत्रेणं व चुन्निओ संतो । भूएण व संगहिओ वाएण व दिट्टिमोहेणं ॥ २७ ॥ जह एए अवरेहिं जुत्तिसहस्सेण पन्नविज्र्ज्जता । ताणं चिय गहिलत्तं अवियप्पं वाहरंति सया ॥ २८ ॥ तह रागाइवसट्टो न मुणसि थेवंपि कज्जपरमत्थं । अह मुणसि तो पयंपह चरिएणं कहवि संचयसि ।। २९ ।। दुग्गंध असुइपुन्नो वाहिं सव्वत्थ चिन्तिओ करगो । पट्टसूयनत्तणयं दाडं पिहिओ य पुप्फेहिं ॥ ३० ॥ दिट्ठो हरेइ चित्तं गंधो असुईए सरइ तं चेव । मूढो वि तं न गहिडं कुणइ मणं किं पुण विवेगी ॥ ३१ ॥ एवं चिय नारीसुं वत्थालंकारभूसियंगीसु । आवायमेत्तरूवं पेच्छिय तत्तं विभावेसु ॥ ३२ ॥ असुईए अट्ठीगं लोहिय - किमिजाल - पूत- मंसाणं । नापि चिंतियं खलु कलमलयं कुणइ हिययंमि ॥ ३३ ॥ पच्चक्खमिणं पेच्छह वन्नियमेत्तं तु जइ न पत्तियह । एक्कारससोएहिं नीहरमाणं सया चैव ॥ ३४ ॥ इय तत्तभावणगओ सयावि भणनिग्गहं करेमाणो । पच्चक्खरक्खसीणं नारीण न गोयरो होसि ॥ ३५ ॥
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