________________
अनुसन्धान ४२
परमकल्लाणहेओ( 3 )सत्ताणं ।
अचिंत्य शक्ति सहित ते अरिहंतादिक गुणी छई ज्ञानादिक गुणवंत रागरहित सर्वज्ञ परमकल्याणप्राप्त एहवा छई । परमकल्याणना कारण जीवोनें ते ते (हेते ?) ।
मूढे अह्यि (अम्हि) पावे अणाइमोहवासिए अणभिन्ने भावओ हिआहिआणं अभिन्ने सिया अहिअनिवित्ते सिआ हियपवित्ते सिआ आराहगे सिआ उचिअपडिवत्ति(त्ती )ए सव्वसत्ताणं सहिअंति इच्छामि सुक्कडं इच्छामि सुक्कडं इच्छामि सुक्कडं ।
___ मूर्ख अमे पापवंत छु । ए विशिष्ट पुरुषोनी [आगे?] अनादि मोहें करी वासित छु, अनभिज्ञ डुं परमार्थथी हिता हित] प्रतिपत्ति करवाने,हितना अभिज्ञ-जांण थाऊं, अहितथी निवृत्त थाऊं, हितमा प्रवृत्त थाऊं,आराधक थाऊं, उचित-प्रतिपत्तिई करीनइं सर्व जीव संबंधिनइं स्वहित इच्छु छु सुकृत प्रति । वणवार ए पदनो पाठ (स्वहित इच्छु छु सुकृत प्रति स्वहित इच्छं छु सुकृत प्रति) ।
___एवमेयं सम्मं पढमाणस्स सुणमाणस्स अणुप्पेहमाणस्स सिढिलीभवंति परिहायंति खिज्जंति असुहकम्माणुबंधा । निरणुबंधे वाऽसुहकम्मे भग्गसामत्थे सुहपरिणामेणं, कडगबद्धे विव विसे, अप्पफले सिआ सुहावणिज्जे सिआ अपुणभावे सिआ ।
ए रीतें ए सम्यक् संवेगसार भणवा(ता)जीवनई, अन्य समीपथी सांभलतां जीवनै,अर्थानुस्मरण द्वारायें अनुप्रेक्षाने करतो एहवाने, मंदविपाकतायें शिथिल थाय, पुद्गलने ओसरवें परिहानि थाय, आशयविशेषाभ्यासद्वाराई मूलथी ज क्षय पामई, भावरूप अथवा कर्मविशेषरूप असुभ कर्मना अनुबंध क्षय पामतां शेष रह्यं असुभकर्म ते अनुबंधरहित थाय, भग्न छे सामर्थ्य जेहनुं विपाक प्रवाहने आश्रईनें एहवं अशुभकर्म थाय । अनंतरोदित सूत्रथी उपने शुभ परिणामें करीने कटकबद्ध जिम विष मंत्रि-सामर्थ्य (मंत्रसामर्थ्य) अल्पफल थाय तिम अल्प फल क० अल्पविपाक थाय, सुखें अपनय करवा योग्य अशुभ कर्म थाय, अपुनर्भाव अशुभकर्म थाय ।
तहा आसगलिज्जंति परिपोसिज्जंति निम्मविज्जति सुहकम्माणु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org