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[ 151 वंदिऊणं -
सिद्धत्थत(य)स्स अंते 'उज्जिता'इ सिलोगपढणं [च] । 'चत्तारि' त्तिय गाहं पच्छा गोयमरिसी काही ॥
__ एसो कंचण(ण)वलाण उद्देसो ।।
------------ जं समयं अरहा अरिठ्ठनेमी उज्जिते केवलनाणे तं समयं कासरहंसि सिर (रि ?) भट्टधूया कोडीनगरम्मि सोम(म) भट्टभारिया कोहिंडिगुत्ता अंवेसरी भयवं अरिठ्ठनेमिणा अट्ठमस्स पारणं अंबाए कारियं । वुवाउ पंचसराउ (?) । अन्नया वरदिन्नपारणए पइताडिया सिवकर-विभकर सहिया दह(ढ?)सम्मत्ता सिरिअरिट्टनेमि पाए समरंती रेडइरेवय)संमुहा, पहे पई पिच्छिण सा(स)हयारसाहाए कालगया, सोलसविज्जादेवीउ जत्थ चिट्ठति । भुवणवईमज्झि जंवुदीवपमाणभुवणा अणेगजक्खगण -गंधव्वसहस्स परिभु(वु)डा महा सम(म्म)द्दिविणा(ट्ठिी) अरिट्टिनेमिपए समरित्ता उहिनाणेणं रेवयसिहरंसि भगवंतं वंदिऊण महिमं करेइ तत्थ अरिहनेमिपडिमाए । कण्हेणावि रुप्पहेममयी पडिमा इमा कारिया वरदिन्नपइट्ठिया । तत्थ अंवगेणवरयं महिमा(म) करेइ । सिरिसमणसंघवन्त्रिया चउव्विहदेवाइट्ठसोहम्माइ(हिवइ ?) सक्केण सासया देवया पट्टविया । तित्थपभावगा महिड्डिया भव्वाणं समाहिवोहिलाभ- कारगा मिच्छतनिद्धाडिणी तिरियं भंग(?) मिच्छद्दिट्ठियोरुवसग्गरक्खयणकरी ठविया। तत्थ रयणमई पडिमा वंभिंदकया । चउव्विह संघपसंसिया वेयावच्च गर(री) काउसग्ग चिंधेण समागम्म सव्वरक्खणकरी । जउ चउविह संघस्स चेईयवंदणावसरम्मि चत्तारि थुईउ सिलोगव(प)माणाउ पवट्टमाणाउ अक्खरेहि सरि[से ?] हिं(सरेहि ?) पउत्ताउ। अंबा महापभावा तइयभवमुक्खगामिणी वीससहसा लक्खाउया एवं तित्थं अणुदिणं आराहेइ ।।
एवमुद्देसो(सा ?) पंच ||
चउप्पन्न अहोरत्ता आवासित्ता आसोयअमावसाए उप्पन्नं केवलं नाणं । रेवयसहसंव[व]णे पडिवोहिया वहवे जीया ।
के(क)उ चाउवन्नो संघो वरदत्ताईया इक्कार गणहरा पट्टविया । अट्ठारस सहस्ससमणा कया । राइमई चत्तालीससहस्सपरिवा[रा] निस्खां(ख)ता। वहवे जीया पडिवोहिया । ढंढणकुमारो पव्वई(इ) उपुष्वकम्मज्जियअंतरायावरणियदासेणं अट्ठन्हें
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