________________
"पढमाणुओग''नी उपलब्ध वाचना
सं. पं. शीलचन्द्रविजय गणि 'पढमाणुओग' ए एक बहुचर्चित अने अप्राप्य जैन आगम ग्रंथ छे. 'नंदिसूत्र' मां तेम ज अन्यत्र आ ग्रंथ विशे प्राप्त वर्णनना आधारे, आ ग्रंथमा अर्हन्तोनां जीवनचरित्रोनो समावेश होवानुं जाणी शकाय छे. आ ग्रंथ, 'मूल प्रथमानुयोग' एवं वास्तविक नाम छे. तेनुं पुनर्विधान श्रीकालकार्ये कयें, पछी ते 'प्रथमानुयोग' नामे ओळखायो. आ ग्रंथ कालान्तरे लुप्त थयानी परंपरा छे. ओछामां ओछु १२ मा सैकाथी तो ते अप्राप्त ज छे. आ ग्रंथना स्वरूप विशे तथा तेना विशे प्रवर्तती केटलीक धारणाओ विशे आगमप्रभाकर मुनिराजश्री पुण्यविजयजीए महावीर जैन विद्यालयना सुवर्ण महोत्सव ग्रंथमा विगते उहापोह कर्यो छे, ते द्रष्टव्य छे. तेओश्रीना निष्कर्ष अनुसार, पढमाणुओग' नामे ग्रंथ कालकार्यनी रचना हती, जे मध्यकालमां अप्राप्त एटले के लुप्त बनेल छे.
मारा पूज्य गुरुजी आचार्य श्री विजयसूर्योदयसूरिजी म.ना संग्रहमा १४ पत्रोनी एक हस्तप्रति छे, जे संभवतः, तेनी लिपि उपरथी, १५मा शतकमां लखायेली छे. आ प्रतिना अंते 'पढमाणुउग्गे सोलसमज्झायणं' आवो उल्लेख छे, ते जोतां, एना लेखक अथवा ए कृतिना प्रणेता तेने पढमाणुओग'तरीके वर्णवे छे तेम समजी शकाय . छे. ते उल्लेख परथी तेओश्रीने ते कृतिमां -प्रतिमां रस पड़यो, अने तेओए पंडित छबीलदास के. संघवी पासे वि.सं. २०२९मां तेनी सुवाच्य प्रतिलिपि करावी लीधी. कृति प्राकृतमां छे, अने अशुद्धिओनो भंडार छे. तेनो विषय ऐतिहासिक-धार्मिक छे, परंतु ते विषयमां सळंगसूत्रता नथी. त्रुटक त्रुटक लाग्या ज करे. आ स्थितिमां गमे तेवा विद्वान वाचक के लेखकने पण तेनी नकल करवामां कठिनाई वर्ताया विना रहे नहि. प्रस्तुत नकलमां पण एवं ज हतुं. ताजेतरमां, आ प्रति तथा तेनी प्रतिलिपि मारा हाथमां आवतां मने पण तेमां रस पड्यो. पुनः साथी साधुओने साथे बेसाडीने ते वांची; घणा सुधारा थया. ते पछी तेनी पुनः प्रतिलिपि करी, जे अत्रे प्रस्तुत छे.
आ रचनाने, आ प्रतिमा निर्देश्या मुजब, 'पढमाणुओग' तरीके ओळखावी अवश्य शकाय, परंतु ते साथे ज, ते 'कूट ग्रंथ' छे, एम पण निःशंक कहेवू जोईए.
आ विधानना समर्थन माटेना केटलाक मुद्दा अहीं तपासीए :
१. पढमाणुओग' ए जिनचरित्रोनुं विशद निरू पण करनारो ग्रंथ छे एम मान्य संदर्भो द्वारा आपणने ज्ञात छे. एनी सामे, प्रस्तुत कृतिमां जिनचरित्रनो एकादो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only,
www.jainelibrary.org