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मई २०११
अज्ञातकर्तृकं श्रीनन्दीश्वरस्तोत्रम् ॥
१
शी.
जैन भूगोलशास्त्र - अनुसार आ पृथ्वी असंख्य द्वीप अने समुद्रोथी व्याप्त छे. तेमां आठमो द्वीप ते नन्दीश्वरद्वीप एक द्वीप, तेने फरतो एक समुद्र, ते पछी एक द्वीप, वळी एक समुद्र, आ क्रमे आ आठमो द्वीप थाय छे. ते द्वीपमां ४ अंजनगिरि, १६ दधिमुख अने ३२ रतिकर नामना पर्वतो छे. १६ वावो छे.
ए बावने पर्वतो ऊपर एकेक जिनचैत्य होय छे, अने तेमां सपरिकर एवी शाश्वती जिन - प्रतिमाओ विराजती होय छे.
आ सर्व बाबतोनुं ट्रंकुं पण शास्त्रोक्त वर्णन आ स्तोत्रमां थयुं छे. नन्दीश्वर द्वीपनां आ बावन जिनालयोनी प्रतिकृतिरूपे, जैनो द्वारा, अनेक गामो के तीर्थोमां, बावन जिनालय - मन्दिरो रचायां छे, अने आजे पण रचातां होय छे. पालीताणा - शत्रुंजय, तारङ्गा तथा अमदावाद जेवां स्थळोमां तथा राजस्थानमां पण उक्त रचनाने तादृश करावती नानी रचनाओ आजे पण जोवा मळे छे. तो तेना पाषाणपटो तेमज चित्रपटो पण घणे ठेकाणे उपलब्ध छे.
आ लघु स्तोत्रना कर्ता अज्ञात छे. तेनुं एक जूनुं, आशरे १५मा सैकानुं एक पानुं विद्वान् मित्र मुनिराज श्रीधुरन्धरविजयजी द्वारा प्राप्त थयुं छे अने तेना परथी तेनी नकल थई अत्रे प्रगट थाय छे.
श्रीनन्दीश्वरस्तोत्रम् ॥
वंदिय नंदियलोयं जिणविसरं विमलकेवलालोयं । नंदीसरचेइयसंथवणेणं थोसामि तं चेव ॥१॥ जोयणकोडिसय-तिसट्ठि, चुलसीइ - लक्ख वलयविखंभो । अट्ठमदीवो नंदीसरुत्ति सयविलस (सि) रसुरोहो ॥२॥ तब्बहुमज्झे चउरो दिसासु अंजणगिरी गवलवन्ना । जोयणसहस्स-चुलसीइमूसिया सहस्समुवगाढा ||३||