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अप्रिल-२००७
वा. श्रीसकलचन्द्रगणिकृत मुनिमाला
सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
तपगच्छपति विजयदानसूरिगुरुना शिष्य उपाध्याय सकलचन्द्रगणिनी आ एक भक्तिप्रधान लघु रचना छे : मुनिमाला, प्राकृतमा 'मुणिमाल'. ५० गाथानी आ रचना तद्दन सरल प्राकृत-महाराष्ट्री प्राकृतमा गाथाबद्ध छे. आमां कर्ताए पुरातन तपस्वी, त्यागी, संयमी, मोक्षगामी एवा अनेक मुनिराजोनां नामोनुं स्मरण करतां जईने तेमने वन्दना करी छे. हृदयनी भक्तिभावनानुं ज प्राधान्य होईने आ नामस्मरणमां कोई क्रम-व्यवस्था नथी. आ तो कवितुं भक्त हैयुं भावविभोर बनीने महापुरुषोने याद करवामां लीन बन्युं होय अने ते क्षणे जेम जेम नामो याद आवतां जाय तेम तेम गाथामां गुंथातां-वणातांवर्णवातां जाय. अटले आमां कालनो के बीजी कोई रीतनो पण कम न जळवातो होय तो ते फरियादनो विषय नथी बनतो.
प्रथम गाथामां मुनिपदे प्रतिष्ठित एवा मुनिओनी मालानुं स्मरण करवानी प्रतिज्ञा करीने, २ थी ८ गाथाओमां ऋषभदेव, तेमना भरतराजा
आदि सो पुत्रो, पौत्रो, गणधरो, आदर्शभुवनमां ज्ञानप्राप्त करनार ८ राजाओ तथा सिद्धि अने सर्वार्थसिद्ध देवविमानने वरनारा असंख्य मुनिओने स्मरेल छे. गा. ९मा सगरादि चक्रवर्ती राज-मुनिओनु, १०मां सुदर्शन शेठ-मुनिनु, ११मां ८ बलदेवो, १२मां बलरामन, मल्लिनाथजिनना ६ राज-मित्रोनु, १३मां विष्णुकुमार तथा स्कन्धकसूरिना ४९९ शिष्यो,, १४मां कार्तिक शेठ तथा तेमनी साथे दीक्षित ८ हजार वणिक्पुत्रो, तेमज सुकोशल अने कीर्तिधर मुनिओनु, १५ मां अफणना मोक्षगामी पुत्रो तथा अक्षोभ, सागरचन्द्र, रथनेमि, नेमिनाथनु, १६मां जालि-मयालि-उवयालि-पुरुषसेन-वारिषेण-प्रद्युम्न-शाम्बअनिरुद्ध-सत्यनेमि-दृढनेमिनु, १७मां शgजय पर्वत पर सिद्ध थनारा ६ देवकीपुत्रो, अने गजसुकुमाल(कृष्णपुत्र)नुं, १८मां ढंढणऋषि, थावच्चापुत्र तथा तेना हजार साधुओ, शुक मुनिनु, १९मां ५०० मुनियुक्त शेलगाचार्य तथा सागर अने सारण (?) मुनि अने नारदमुं, २०-२१मां नेमिनाथ-तीर्थमा दीक्षित
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