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जून २००९
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'वादिविंदप्पहु' कहे छे. ते उचित लागे छे. कारण के जिनपतिसूरिओ 'विधिप्रबोधवादस्थल' नामनो ग्रन्थ रच्यो छे. तेमां (वादिदेवसूरिशिष्य > महेन्द्रसूरि >) प्रद्युम्नसूरिओ 'वादस्थल' नामना पोताना ग्रन्थमां करेल 'आशापल्लीना उदयविहारमा प्रतिष्ठित प्रतिमा पूजनीय नथी', आवा विधान- खण्डन कर्यु छे. सं. १२३३ मां कल्याणनगरमां महावीर भगवाननी प्रतिमानी प्रतिष्ठा करी हती (जिनप्रभसूरिकृत विविधतीर्थकल्प), तीर्थमाला, जिनवल्लभसूरिकृत 'संघपट्टक' उपर टीका (प्राय: सं. १२९९), जिनेश्वरसूरिकृत पंचलिंगी प्रकरण उपर विवरण वगेरे अपनी रचनाओ छे. (मोहनलाल द. देसाई
जै. सं. साहित्यनो संक्षिप्त इति. पृ. ४९२, सं. मुनिचन्द्रसूरिजी) ३. जिनरत्नकोश. विभाग १, पृ. २२४, तथा पंचतन्त्र उपाख्यान (जे पूर्णभद्रनी
सं. १२५५ नी रचना)ना उपोद्घात, मां डो. सांडेसरा तथा मो.द. देसाई वगेरे 'जिनपतिसूरिशिष्य पूर्णभद्रगणिनो कवन समय १२५५ थी १३०५ गणावे छे. परन्तु 'युगप्रधानाचार्यगुर्वावली' प्रमाणे खर. पूर्णभद्रगणिनी दीक्षा वि. १२६०मां थयेल छे. अटले अगरचंद नाहटा पंचाख्यानना कर्ता अने 'आनंदादिदसकहाओ'ना कर्ता - पूर्णभद्र जुदा हशे अम माने छे. (ही.र. कापडिया, जैन सं. साहित्यनो इति. सं. मुनिचन्द्रसूरिजी - खंड १,
पृ. १३९) ४. पूर्णभद्रगणिनी बीजी कृतिओ आ मुजब छे : १. स्थानांग सूत्र, भगवती सूत्रमाथी उद्धृत करीने 'अतिमुक्तक चरित्र'
(र.सं. १२८२. पालनपुर). २. छ परिच्छेदमां विभक्त 'धन्यशालिभद्र चरित्र' (र.सं. १२८४, जेसलमेर) ३. कृतपुण्यचरित्र (र.सं. १३०५)
आमां सर्वदेवसूरिजीओ सहाय करी हती अने सूरप्रभवाचके कृतिओनुं
संशोधन कर्यु हतुं. ४. 'पंचतन्त्र' आ प्रसिद्ध नीतिकथाग्रन्थ उपरथी 'पंचाख्यान ग्रन्थ'
(र.सं. १२५५ खंभात) ५. आनन्द वगेरे दश श्रावकोनां जीवन उपर [प्रायः उवासगदसाओना
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