________________
हो तो उसके विरुध्द आंदोलन करना धर्म और संस्कृति का गौरव बढाना है. धर्म ऐसे पवित्र आंदोलन का विरोध नहीं करता है.
सच्चा अहिंसक एक चिंटी के भी अकारण प्राण हरण करने में थर्रा उठेगा किंतु वही व्यक्ति न्याय-नीति व धर्म रक्षा के लिए अनिवार्य रुप से संग्राम में कूद कर बेहिचक हजारों अत्याचारियों के मस्तक उतारने से भी नहीं डरेगा.
जिस अन्याय अत्याचार का प्रतिकार करने में तुम असमर्थ हो कम से कम तुम उसमें सहायक तो मत बनो.
अन्याय व अनीति का प्रतिकार न करना मानवता व राष्ट्र के लिए घोर कलंक है. सच्चा धर्मवीर अन्याय के विरुध्द अलख जगाता है. वह न तो स्वयं अन्याय करता हैओर न अपने सामने होने वाले अन्याय को देख सकता है. वह सदैव अन्याय के प्रतिकार के लिए कटिबध्द रहता है. अन्याय का प्रतिकार करने के लिए समाज, संस्कृति और देश के चरणों में वह अपने प्राणों को हँसते-हँसते बलिदान कर देता है.
__ अन्याय-अत्याचार के कारण हथकडी पहनना अपने कुल को कलंकित करना है. किंतु अन्यायअत्याचार को दूर करने के लिए हथकडी-बेडी पहनना आभूषण के समान है व कुल एवं धर्म का गौरव बढाना है.
आचार्य जवाहर जी के इन क्रांतिकारी विचारों के कारण वे सदा ही राष्ट्रभक्तों में गौरव का विषय बने रहे. स्वयं गाँधी जी ने उनके बारे में दिनांक २९ अक्तुबर १९३६ को राजकोट में कहा था कि इस देश में दो जवाहर हैं - एक घडी की सुई की तरह बाहर हैं और दूसरे घडी की मशीन की तरह भीतर हैं. देश को दोनों की जरुरत है.
महाराज ने खद्दर प्रचार, मादक द्रव्य-निषेध, अस्पृश्यता निवारण, गो-रक्षा, कुरीति निवारण आदि विविध विषयों पर भी धार्मिक दृष्टिकोण से प्रभावशाली प्रवचन दिए. उनके विचार सर्वग्राही और सर्वस्पर्शी रहे. उनकी सांप्रदायिक चिंतन धारा विशालता की अविरोधिनी रही. १० जुलाई १९४३ को जवाहररुपी पवित्र आत्मा ने शरीर का त्याग कर स्वर्ग की और प्रयाण कर दिया. शास्त्र में कहा गया है -"
जह दीवो दीवसयं, पइप्पए जसो दीवो। दीवसमा आयरिया, दिव्वंति परं च दीवंति।।
अर्थात- आचार्य दीपक के समान हैं. जैसे दीप सैंकडों दीपकों को जलाता है और खुद भी प्रकाशित रहता है, ऐसे दीप के समान आचार्य स्वयं ज्ञानादि गुणों से दीप्त और उपदेश दान आदि से दूसरों को भी दीपाते
सुप्रसिध्द समाजसुधारक एवं राष्ट्रधर्मी जैन युवक संघ, राजकोट के मंत्री श्री जटाशंकर मणिकलाल मेहता जी ने आचार्य महाराज और महात्मा गाँधी जी की हृदयंगम भेंट का वर्णन किया है. महाराज जी के मन में गाँधी जी के प्रति और उनके सिध्दांतों के प्रति आदरभाव था. जवाहरलाल जी के पचास ग्रंथ रामायण, महाभारत, नारी, गृहस्थ, धर्मजीवन, सती चरित्र, प्रवचन, स्मारक सम्यकत्व पराक्रम खंड १ से ५, धर्म और धर्मनायक, रामवनगमन खंड २, अंजना, पांडव चरित्र खंड २, बीकानेर के व्याख्यान, शक्तिभद्र चरित्र, मोरबी के व्याख्यान, संवत्सरी, जामनगर के व्याख्यान, प्रार्थना प्रबोध, उदाहरण माला खंड ३, नारी जीवन, अनाथ भगवान खंड २, गृहस्थ धर्म खंड ३, सती राजमती, सती मदन रेखा, हरिश्चंद्र तारा, जवाहर ज्योति, जवाहर विचार सार, सुदर्शन चरित्र, सती वसुमति खंड २, भागवती सूत्र व्याखान ८ आदि ग्रंथ प्रसिध्द हैं.