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________________ देवता और नारकी जीव मरणोपरांत-मनुष्य और तिर्यंच गतियों में से ही किसी गति में जन्म ले सकते हैं। तिर्यंच जीव मरणोपरांत चारों गतियों में से किसी गति मे जन्म ले सकते हैं; जबकि मात्र मनुष्य ही पांच- चार गतियों के सिवाय पांचवी-मोक्ष गति में जा सकते हैं। मानव-भव उत्तम है। चित्र विचित्र देवसंसार ज्यों पाप-कर्मों का दारुण फल भोगने का स्थान है नरक, त्यों ही पुण्यकर्मों के मधुर फल भोगने का स्थान है देवलोक। नरकभूमि में जीव ज्यों नानारूपों से दुःख ही दुःख भोगते हैं; त्यों ही देवलोक में जीव सुख ही सुख भोगते हैं। नरक-भूमि एवं देवलोक में जन्म लेने वाले जीवों का जन्म उपपात जन्म कहलाता है। उपपात जन्म- उपपात नामक शय्या पर अथवा कुंभी में पहुँचते ही जीव मात्र अंतर्मुहूर्त प्रमाण काल में ही स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण कर और युवावस्था को प्राप्त कर जो नए जीवन का प्रारंभ करता है; वह उपपात जन्म कहलाता है। देव का जन्म उपपात-शय्या पर एवं नारकी का जन्म कुंभी में होता है। परमात्मा ने देवों को चार वर्गों में बाँटा है(१) भवनवासी (२) वाणव्यंतर (३) ज्योतिषी (४) वैमानिक। भवनवासी देवताओं के भेद हैं २५। असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत् कुमारादि दस जातियाँ भवनवासी देवों की और असुरकुमारजातीय अंब, अंबरीष, श्याम, शबलादि १५ परमाधार्मिक देवों की जातियाँ हैं। इन २५ प्रकार के देवों के दो-दो भेद हैं - (१) पर्याप्ता, (२) अपर्याप्ता। भवनवासी देवों का सामान्य परिचय भवनवासी देवता भवनों एवं आवासों में रहते हैं। असुरकुमार नामक भवनवासी देवता ही भवनों में; शेष नागकुमारादि भवनवासी देवता आवासों में रहते हैं। भवनों एवं आवासों के आकार में अंतर पाया जाता है; जो बाहर से गोल, अंदर से चतुष्कोण और नीचे से कमल की कर्णिका के आकार वाले हों वे भवन कहलाते हैं। तथा देह-प्रमाण बड़े, मणि एवं रत्नों के दीपकों से चारों दिशाओं को प्रकाशित करने वाले मंडप आवस कहलाते हैं। भवनों के चहुं ओर * प्राण देने में जो या नहीं मिलता वह प्रेम देने मे मिल जाता है.
SR No.229256
Book TitleChitra Vichitra Jiva Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherZ_Aradhana_Ganga_009725.pdf
Publication Year2012
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size199 KB
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