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जिनमंदिर में प्रवेश और पूजा का क्रम
'पहेलुं ज्ञान ने पछी किरिया, नहि कोई ज्ञान समान रे...'
१. दूर से जिनालय का ध्वज देखते ही दोनों हाथ जोड़कर मस्तक नमा कर 'नमो जिणाणं' कहे.
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८.
प्रथम निसीहि बोलकर जिनालय के मुख्य द्वार से प्रवेश करें. (इस निसीहि से संसार संबंधी सभी कार्यों का और विचारों का त्याग होता है.)
परमात्मा का मुख देखते ही दो हाथ जोड़कर मस्तक पर लगाकर सिर झुकाकर 'नमो जिणाणं' कहें.
जीव हिंसा न हो उस प्रकार से तीन प्रदक्षिणा दें.
पुरुष वर्ग परमात्मा की दाई ओर तथा स्त्री वर्ग बाई ओर खड़े रहकर कमर से आधा अंग झुकाकर 'अर्धावनत प्रणाम' करके मधुर कंठ से स्तुति बोले. आठ मोड ( तह) वाला मुखकोश बाँधकर बरास केसर अपने हाथ से घिसने का आग्रह रखें.
'परमात्मा की आज्ञा मस्तक पर चढाता हूँ ऐसी भावना के साथ पुरुष वर्ग दीपक की शिखा या बादाम के आकारका और स्त्रीवर्ग समर्पण भावना के प्रतीक जैसा सौभाग्यसूचक गोल तिलक करें..
आठ मोड ( तह) वाला मुखकोश बाँधकर केसर, पुष्प धूप से धूप कर दूसरी निसीहि बोलकर गर्भगृह में प्रवेश करें.
९. प्रतिमाजी पर से निर्माल्य निकालकर मोरपींछी करें.
१०. पानी के कलश से मुलायम भीने वस्त्र से प्रभुजी के अंग पर रहा हुआ केसर दूर करे. वालाकुंची का उपयोग हितावह नहीं है. फिर भी आवश्यक हो तो ही करें.
११. पंचामृत से प्रभुजी का अभिषेक करे. (अभिषेक करते हुए घंटनाद, शंखनाद करे, दोहे बोले, चामर दुलाये. फिर जल से अभिषेक करे.)
१२. जल से प्रभुजी को स्वच्छ कर हलके हाथ से प्रभुजी को तीन अंगलूछने करे. (जरूरत हो तो वालाकुंची का उपयोग करें.)
१३. बरास
चंदन का विलेपन करें.
धर्म से खिलवाड़ मत करो. उससे पाप ही नहीं अत्यंत पापानुबंध भी होता है.