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________________ 12 नेत्रानन्द-करी भवोदधि-तरी, श्रेयस्तरोर्मंजरी; श्रीमद्धर्म-महा-नरेन्द्र-नगरी, व्यापल्लता-धूमरी. हर्षोत्कर्ष-शुभ-प्रभाव-लहरी, राग-द्विषां जित्वरी; मूर्तिः श्रीजिन-पुंगवस्य भवतु, श्रेयस्करी देहिनाम्. अद्या-भवत् सफलता नयन-द्वयस्य; देव! त्वदीय-चरणांबुज-वीक्षणेन. अद्य त्रिलोक-तिलक! प्रति-भासते मे; संसार-वारिधि-रयं चुलुक-प्रमाणः. तुभ्यं नमस्त्रि-भुवनार्ति-हराय नाथ; तुभ्यं नमः क्षितितला-मल-भूषणाय. तुभ्यं नमस्त्रि-जगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन! भवोदधि-शोषणाय. प्रशम-रस-निमग्नं, दृष्टि-युग्मं प्रसन्नम्। वदन-कमल-मंकः, कामिनी-संग-शून्यः. कर-युगमपि यत्ते, शस्त्र-संबंध-वंध्यम्; तदसि जगति देवो, वीतराग-स्त्वमेव. अद्य मे सफलं जन्म, अद्य मे सफला क्रिया; अद्य मे सफलं गात्रं, जिनेंद्र! तव दर्शनात्. दर्शनाद् दुरित-ध्वंसी, वंदनाद् वांछित-प्रदः; पूजनात् पूरकः श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरद्रुमः. अर्हन्तो भगवंत इन्द्रमहिता, सिद्धाश्च सिद्धिस्थिता, आचार्या जिनशासनोन्नतिकरा, पूज्या उपाध्यायका; श्री सिद्धांत सुपाठका मुनिवरा, रत्नत्रयाराधका, पंचै ते परमेष्ठिनं प्रतिदिनं, कुर्वन्तु वो मंगलं. पाताले यानि बिंबानि, यानि बिंबानि भूतले, स्वर्गेपि यानि बिंबानिं, तानि वंदे निरंतरम्. 35 36 जिसकी हम उपेक्षा करते है, बिगाड़ते है वह वस्तु हमें पुनः नहीं मिलती. ही धर्म भी/X
SR No.229246
Book TitleSthapna Sutra evam Prabhu Darshan Stutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherZ_Aradhana_Ganga_009725.pdf
Publication Year2012
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size134 KB
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