________________
| स्वर-व्यंजन, संयुक्ताक्षरों का प्रयोग नहीं होता है । अर्धमागधी भाषा में शब्द अत्यंत मृदु व कोमल होते हैं । इन शब्दों की ध्वनि भी प्रयोक्ता और श्रोता के मन/अध्यवसाय में अनोखा परिवर्तन करने में समर्थ होती है । अध्यवसाय के शुद्धिकरण से हमारे आभामंडल का भी शुद्धिकरण होता है और उसके द्वारा शारीरिक, मानसिक, भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति होती है । अतएव हमारे आगम व सूत्रों को अपने पूर्वकालीन आचार्य/महापुरुष मंत्रस्वरूप |मानते थे । जैसे विद्या या मंत्र का अर्थ बिना जाने भी उसी विद्या या मंत्र का पाठ या जाप करने से इष्ट कार्यसिद्धि होती है वैसे ही सूत्रों के अर्थ बिना जाने भी मूल शब्दों का श्रवण भी प्रयोक्ता और श्रोता दोनों का कल्याण करता है । अतएव पर्युषणा पर्व में अंतिम दिन श्री कल्पसूत्र मूल अर्थात् श्री बारसा सूत्र का साद्यंत श्रवण किया जाता है और उसमें भी प्रत्येक साधु साध्वी के लिये इसी बारसा सूत्र का श्रवण अत्यावश्यक माना जाता है । __ " नमो अरिहंताणं " का उच्चारण करते समय जो भाव आते हैं वे भाव कभी भी अरिहंत परमात्मा को नमस्कार हो का उच्चारणण करते समय नहीं| आयेगा । नमस्कार महामंत्र आदि प्रतिक्रमण के सभी सूत्र मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति के महान साधन है । अमरिका में जो जैन नहीं है वैसे बहुत से अमरिकन मानसिक शांति के लिये नमस्कार महामंत्र इत्यादि का उच्चारणणपूर्वक जाप करते हैं और मानसिक शांति प्राप्त करते हैं | __नौ साल पहले इंग्लैण्ड की सुप्रसिद्ध प्रकाशन संस्था Themes | Hudson द्वारा प्रकाशित किताब "Yantra' मेरे पढ़ने में आयी । उसमें
उसके लेखक श्री मधु खन्ना ने बताया है कि रोनॉल्ड नामेथ (Ronald) |Nameth) नामक विज्ञानी ने ब्राह्मणों के ' श्रीसुक्त ' के ध्वनि को Tonoscope नामक यंत्र में से प्रसारित करने पर उसके स्क्रीन पर श्रीयंत्र की आकृति प्राप्त होती है ।' यदि श्रीसुक्त के स्थान पर उसके अर्थ के ध्वनि को या श्रीसुक्त के शब्दों के क्रम में परिवर्तन करके उसके ध्वनि को इसी यंत्र में से पसार करने पर क्या श्रीयंत्र की आकृति प्राप्त हो सकेगी ? अर्थात् श्री द्वादशांगी के रचयिता चौदह पूर्वधर गणधर भगवंतों ने जो सूत्र रचना की है वह पूर्णतः वैज्ञानिक है और सर्व जीवों का हित करने वाली मंत्रस्वरूप है । अतएव कदाचित् नमस्कार महामंत्र के मूल स्वरूप को
8
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org