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उदड, चना, तुवर (अरहर) इत्यादि धान्य सजीव भी हो सकते हैं और निर्जीव भी हो सकते हैं क्योंकि उनकी धान्य के रूप में निष्पत्ति होने के बाद |निश्चित समय तक ही वे सजीव रहते हैं, बाद में वे अपने आप ही निर्जीव हो जाते हैं । इसके बारे में प्रवचनसारोद्धार नामक ग्रंथ के धान्यानामबीजत्वम द्वार में बताया है कि गेहूँ, जौ, शालिधान, जुआर, बाजरा इत्यादि धान्य कोठी में अच्छी तरह बंद करके ऊपर गोमय आदि से सील किया जाय तो वे ज्यादा से ज्यादा तीन साल तक सजीव रहते हैं । बाद में वे अचित्त / निर्जीव हो जाते हैं |
उसी तरह तिल, मूंग, मसूर, मटर, उदड, चौला, कुलत्थ, अरहर (तुवर) सेम इत्यादि पाँच वर्ष के बाद निर्जीव हो जाते हैं । जबकि अलसी, कपासिया, कंगु, कॉदों के दानें, सरसों इत्यादि धान्य ज्यादा से ज्यादा सात साल तक सजीव रह सकते हैं । बाद में वे अवश्य निर्जीव हो जाते हैं।
ऊपर बताया गया समय ज्यादा से ज्यादा है । जबकि कम से कम समय तो सिर्फ अन्तर्मुहुर्त अर्थात् दो घडी (48 मिनिट्स) ही है अर्थात् उसी धान्य के दाणे में जीव उत्पन्न होने के बाद सिर्फ 48 मिनिट्स के पहले भी वह निर्जीव हो सकते हैं ।
इस प्रकार अन्य धान्य भी निर्जीव हो सकते हैं । अतः हरी सब्जी का इस्तेमाल करने में जितना पाप लगता है इतना पाप उसका त्याग करने से लगता नहीं है । पर्व-तिथि में हरी सब्जी का त्याग करने का एक ओर तार्किक व शास्त्रीय कारण यह है कि हरी सब्जी का त्याग करने से मनुष्य को उसके प्रति आसक्ति पैदा नहीं होती है । सामान्यतः हरी सब्जी व फल में सुके दलहन (द्विदल) की अपेक्षा ज्यादा मधुरता होती है अतः मनुष्य को सके दलहन (द्विदल) के बजाय हरी सब्जी व फल का आहार करना ज्यादा प्रिय लगता है । यदि वह हररोज किया जाय तो मनुष्य को उसके प्रति गहरी आसक्ति पैदा हो जाती है, परिणामतः उसको उसमें पैदा होना पड़ता है क्योंकि क्रमवाद का नियम है कि जहाँ आसक्ति वहाँ उत्पत्ति । __ वास्तव में जो लोग शाकाहारी है उनको हरीसब्जी लेने की आवश्यकता नहीं है किन्तु जो लोग मांसाहारी है उनको ही हरी सब्जी लेने की विशेष आवश्यकता है क्योंकि उनके खुराक में मनुष्य के शरीर के लिये आवश्यक क्षार, विटामीन, कार्बोहाईड्रेट्स नहीं होते हैं उसी कारण से उन सब को
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