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कमी होती है । हालाँकि, यह कमी प्रकाश के वेगमान (momentum = p=mv=me) अनुसार बहुत ही कम होती है । ऐसी नगण्य कमी का गणित डॉ. प्र. चु. वैद्य ने हमें दिया है । यद्यपि आधुनिक विज्ञान में कहीं कहीं फोटॉन कणों का द्रव्यमान 3.0 x 10 43 बताया है तथापि आधुनिक | भौतिकी फोटॉन को शून्य द्रव्यमान युक्त मानती है । __ आधुनिक भौतिकी ऐसा मानती है कि सूर्य आदि या उससे अधिक द्रव्यमान वाले ताराओं के ज्यादातर गुरुत्वाकर्षण के कारण उसके आसपास का आकाश संकुचित होता है । उसमें से प्रसारित होने वाले पदार्थ का मार्ग भी थोड़ासा वक्राकार बनता है । वस्तुतः जैन दार्शनिक मान्यता अनुसार आकाश एक अखंड द्रव्य है । वह अपौद्गलिक है अतः वह निष्क्रिय और निर्गुण है । हालाँकि नैयायिक दर्शनवाले शब्द को आकाश का गुण मानते हैं किन्तु जैनदर्शन शब्द को पूर्णतः पौद्गलिक मानता है और वह आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण द्वारा भी सिद्ध हो सकता है । अतः जैन दार्शनिक मान्यता अनुसार निर्गुण व निष्क्रिय आकाश पर किसी भी पदार्थ के गुरुत्वाकर्षण का तनिक भी असर नहीं होता है किन्तु किसी भी पदार्थ के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में आनेवाले पौद्गलिक पदार्थों पर ही उसके गुरुत्वाकर्षण का असर होता है । यदि वही पदार्थ - तारा या सूर्य - किरणोत्सर्ग करता हो तो, वही किरणोत्सर्ग उसी तारा या सूर्य का गुरुत्वाकर्षण कम करता है । यही कमी प्रकाश / फोटॉन के स्वरूप में जिन शक्ति का उत्सर्जन तारा या सूर्य करता है, उसी शक्ति अर्थात् फोटॉन को भी द्रव्यमान (mass) होने का प्रमाण है। __ आइन्स्टाइन की जनरल थ्योरी ओफ रिलेटीविटी (General Theory of Relativity) के अनुसार सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से तारे के किरण के वक्रीकरण (Solar deflection of Star light) द्वारा प्राप्त उसी तारे का स्थानांतर संपूर्ण खग्रास सूर्यग्रहण के दौरान नापा गया । अतएव फोटॉन को है ऐसा सिद्ध होता है क्योंकि जो पौद्गलिक है अर्थात् जिसके द्रव्यमान है उस पर ही गुरुत्वाकर्षण का असर होता है, यदि प्रकाश के कणों का द्रव्यमान शून्य होता तो किसी भी प्रकार के प्रबल गुरुत्वाकर्षण का उन पर | कोई असर नहीं हो सकता । किन्तु ऊपर बताया उसी प्रकार G. T. R. में | तारे की किरण पर सूर्य के प्रबल गुरुत्वाकर्षण की असर पायी जाती है ।
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