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इन्दौर में दिये गए प्रवचनोंका संग्रह पीछे 'नय दर्पण' नामक स्याद्वाद न्याय विषयक ग्रन्थके रूपमें प्रसिद्ध हुआ और सहारनपुर में दिए गए कुछ प्रवचन शान्तिपथ-प्रदर्शनके द्वितीय संस्करण में सम्मिलित कर दिये गए। शिरीक कए यद्यपि समाज में आपकी प्रतिष्ठा बराबर बढ़ रही थी, परन्तु आपका सत्यान्वेषी चित्त भीतर ही भीतर किसी दूसरी दिशा की ओर जा रहा था। उसे यह जानते देर नहीं लगी कि जिस दिशामें वह चला जा रहा है वह सत्य नहीं असत्य है, इस जन रञ्जना के व्यापारने उसे पथ-भ्रष्ट कर दिया है, और यदि शीघ्र न सम्भला तो उसकी भी वही गति हो जानी निश्चित है जो कि अन्य साधकों की आज प्रायः हो रही है। अत: आपने इस सकल प्रपञ्च को छोड़कर एकान्तवास तथा मौन-वृत्ति धारण कर ली, प्रवचन देना तथा इस उद्देश्य से स्थान-स्थान भ्रमण करना छोड़ दिया और रोहतक जाकर नगरसे बाहर श्री नन्दलालजी की बगीची में अकेले रहने लगे । त्यागी जनोंमें इस प्रकार की वृत्ति आजकल सर्वथा अप्रसिद्ध है इसलिये समाजमें आपके प्रति सन्देहात्मक दृष्टि उठना स्वाभाविक था। यह सन्देह धीरे-धीरे क्षोभका रूप धारण करने लगा, परन्तु आपके सत्यान्वेशी दृढ़ संकल्प को डिगा सके इतनी सामर्थ्य उसमें नहीं थी । शिशिर Eि TIPS FOR पीक
प्रकृति आपकी इस विजय को देख न सकी और १९७० की सदियोंमें श्वास रोगने अपनी पूरी शक्ति के साथ प्रापपर आक्रमण कर दिया। दशा शोचनीय हो गई और आप समाधि मरण धारण करने का विचार करने लगे। परन्तु जब डाक्टरों तथा वैद्यों ने यह विश्वास दिलाया कि 'यह सर्व विपत्ति वास्तव में पानी की कमी के कारणसे है' और यदि आप शामको एकबार पानी लेना स्वीकार कर लें तो सहज दूर हो सकती है। रोहतक समाज ने भी अपसे अपना विचार बदल देनेका आग्रह किया और सुझाया कि 'देह-त्याग करने से सत्यपथपर जो प्रगति वर्तमान में चल रही है वह रुक जायेगी और साथ ही जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश के प्रकाशन का जो काम अधूग पड़ा है वह अधूरा ही