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________________ २०० धर्म और समाज जीवनप्रद और मानवतापोषक हो। उसका विरोध धर्मके नामसे सिखाई जानेवाली बातोंके प्रति ही है और उसका कारण है उस प्रकारकी धर्मशिक्षाके द्वारा मानवताका विकास होनेके बजाय ह्रास होना । दूसरी ओर धार्मिक शिक्षाका आग्रह रखनेवाला मुख्य रूपसे अमुक अमुक पाठ सिखाने और परम्परागत क्रियाकाण्ड सिखानेका ही आग्रह करता है। इस आग्रहके मूलमें उसका खुदका धर्मविषयक जीता जागता अनुभव नहीं होता किन्तु परम्परागत क्रियाकाण्ड के जो संस्कार उसे प्राप्त हुए हैं उन संस्कारोंको बनाए रखनेका जो सामाजिक मोह है और उन संस्कारों को सींचने के लिए पंडित और धर्मगुरु जो निरन्तर जोर दिया करते हैं वह होता है। जिस समय विरोधी वर्ग धार्मिक शिक्षाका विरोध करता है उस समय यह इतना तो मानता ही है कि मानव-जीवन उच्च और शुद्ध संस्कारयुक्त होना चाहिए । ऐसे संस्कार कि जिनका सेवन करके मनुष्य निजी और सामाजिक जीवन में प्रामाणिकता न छोड़े, तुच्छ स्वार्थके लिए समाज और राष्ट्र के विकासको रूद्ध करनेवाला कोई भी काम न करे । जीवन-पोषक एक भी तस्व इस वर्गको अमान्य नहीं होता। इसका अर्थ यह हुआ कि समृद्ध और संस्कारी जीवनके लिए जो आवश्यक शिक्षा है वही इस वर्गकी दृष्टिमें ठीक है । जिस शिक्षाके द्वारा जीवन में उदात्त संस्कार जमने की संभावना शायद ही होती है, उस शिक्षाका विरोध ही उसका विरोध है। इस तरह गहरे उतरकर देखें तो मालूम होगा कि धार्मिक शिक्षाका विरोध करनेवाला वर्ग वास्तवमें धार्मिक शिक्षाकी आवश्यकता स्वीकार करता है । दूसरी ओर इस शिक्षाका बहुत आग्रह रखनेवाला शब्द-पाठ और क्रियाकांडके प्रति चाहे जितना आग्रह रखे, फिर भी जीवनमें उच्च संस्कार-समृद्धि बढ़ती हो या उसका पोषण होता हो तो वह उसे देखनेके लिए उत्सुक रहता है। इस प्रकार आमने सामनेके छोरोंपर खड़े हुए थे दोनों वर्ग उच्च और संस्कारी जीवन बनानेके विषयमें एकमत हैं । एक पक्ष अमुक प्रकारका विरोध करके और दूसरा पक्ष उसका समर्थन करके अन्तमें दोनों नकार और हकारमेंसे एक ही सामान्य तत्वपर आकर खड़े हो जाते हैं। यदि आमने सामनेके दोनों पक्ष किसी एक विषयमें एकमत होते हों, तो उस उभयसम्मत तत्त्वको लक्ष्य करके ही शिक्षाके प्रश्नका विचार करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229220
Book TitleDharmik Shiksha ka Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherZ_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf
Publication Year1951
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & Education
File Size307 KB
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