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অল্প জী
असर बौद्ध और जैनके स्वागी माने जानेवाले भिक्षुकोंपर भी हुआ । केवल इन दोनों में ही आपसी फूट और विरोध नहीं बढ़ा, इनके उपभेदोंमें भी वह प्रविष्ट हुआ। दिगम्बर भिक्षु श्वेताम्बर भिक्षुको और श्वेताम्बर भिक्षु दिगम्बर-. भिक्षुको नीची नजरसे देखने लगा। उदारताके स्थानमें दोनोंमें संकुचितता बढ़ने और पुष्ट होने लगी। केवल श्वेताम्बर सम्प्रदायके भिक्षुओंमें भी शास्त्रके नामपर आपसमें खूब विरोध और भेद उत्पन्न हुआ। आध्यात्मिक माने जाने-- वाले तथा आध्यात्मिक रूपसे पूजित शास्त्रोंका भी उपयोग, एक या दूसरे प्रकारसे धनकी उत्पत्तिमें, विरोधके साथ कटुताकी वृद्धिमें और अपनी अपनी निजी दूकानें चलानेमें होने लगा। इस प्रकार शास्त्रने शस्त्रका स्थान ले लिया
और वह भी शुद्ध शस्त्रका नहीं विषाक्त शस्त्रका । यही कारण है कि आज यदि कहीं कलह और विवाद के बीज अधिक दिखाई देते हो, या अधिक व्यापकरूपसे कलह और विवाद फैलनेकी शक्यता दीखती हो, तो वह तथाकथित त्यागी होनेपर भी शास्त्रजीवी वर्गमें ही है और इसका असर इधर उधर समस्त समाज में व्याप्त है।
___ अब क्या करें? ये सब तो भूतकालकी बातें हुई। किन्तु प्रभ होता है कि अब वर्तमानः और भविष्य कालके लिए क्या किया जाना चाहिए ? क्या शास्त्रों और शस्त्रोद्वारा फैला हुआ विष इन दोनोंके नाशसे दूर हो सकता है या अन्य कोई रास्ता है ? इन दोनोंके नाशसे तो विष नष्ट हो नहीं सकता। यूरोपमें शस्त्र कम करने और नष्ट करनेकी बात चल रही है किन्तु वृत्तिके सुधरे बिना केवल शस्त्रोंके नाशसे शान्ति नहीं हो सकती । एक कहेगा कि यदि सर्वत्र वेदका झंडा फहराने लगे तो क्लेश और विवाद जो पंचोंके निमित्तसे होते हैं, वे न हों। दूसरा कुरानके विषय में भी यही कहेगा किन्तु हमें इस भ्रममें नहीं रहना चाहिए । क्योंकि एक ही वेदके अनुयायियों और एक ही कुरानके माननेवालों में भी मारामारी चलती रहती है। जब एक झंडेके नीचे दूसरे अधिक इकट्ठे होंगे, तब अबकी अपेक्षा मारपीट और बढ़ेगी। तब ऐसा कौन-सा उपाय है जिससे वैरका विष नष्ट हो जाय १ उपाय एक हो है और वह है उदारता और ज्ञानशक्तिकी वृद्धिका । यदि हममें उदारता और ज्ञानशक्ति बढ़ जाय, तो हम चाहे जिस
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