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________________ प्राकृत एवं अपभ्रंश जैन साहित्य में कृष्ण : १०५ संदर्भ में प्रश्न पूछते हैं। अपने परिजनों को अरिष्टनेमि के पास दीक्षित होता देखकर उनके मन में एक आत्मग्लानि उत्पन्न होती है कि मैं इस राज्य लक्ष्मी का त्याग करके प्रभु के पास प्रव्रज्या ग्रहण करने में अपने को असमर्थ क्यों अनुभव कर रहा हूँ तथा राज्य और अन्त:पुर में गृद्ध बना हुआ हूँ। अरिष्टनेमि श्रीकृष्ण के इस मनोभाव को जानकर कहते हैं कि हे कृष्णा! सभी वासुदेव राजा निदान करके जन्म लेते हैं अत: उनके द्वारा प्रव्रज्या ग्रहण करना सम्भव नहीं होता। यहां कृष्ण अरिष्टनेमि से अपनी मृत्यु और भावी जीवन के सम्बन्ध में प्रश्न करते हैं । अरिष्टनेमि उन्हें बताते हैं कि यादवकुमार मद्यपान करके जब द्वैपायन ऋषि को क्रुद्ध करेंगे, तब द्वैपायन ऋषि अग्निकुमार देव होकर इस द्वारिका का विनाश करेंगे। उस समय तुम अपने माता-पिता और स्वजनों के वियोग से दुःखी होकर बलराम के साथ दक्षिणी समुद्र तट की ओर पाण्डु-मथुरा की ओर प्रस्थान करोगे। रास्ते में कौशाम्बवन उद्यान में तम पीताम्बर ओढ़कर सोओगे। उस समय जराकुमार मृग के भ्रम में तुम पर तीर चलाएगा। उस तीर से विद्ध होकर तुम तीसरी पृथ्वी में उत्पन्न होओगे। वहां की आयु पूर्ण कर इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पुण्ड्र जनपद की शतद्वारा नामक नगरी में अमम नाम के बारहवें तीर्थकर होगे (द्रष्टव्य है कि समवायांग-सूत्र में भविष्यकालीन तीथंकरों में अमम का नाम १३वां बताया गया है)। श्रीकृष्ण द्वारिका के विनाश और अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी सुनकर द्वारिका के निवासिओं और अपने परिजनों को अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या लेने हेतु प्रोत्साहित करते हैं। परिणामस्वरूप कृष्ण की अनेक रानियां और पुत्र-परिजन प्रव्रज्या ग्रहण कर लेते हैं । कृष्ण के लघुभाता गजसुकुमाल की कथा अन्तकृत्दशा में कृष्ण के सात भाईयों का उल्लेख हमें उपलब्ध होता है। जिनमें से अनियसकुमार आदि छ: का पालन-पोषण भद्दिलपुर नगर के नाग नामक गाथापति की पत्नी सुलसा द्वारा होता है। कथा के अनुसार देवकी को किसी भविष्यवेत्ता ने एक सरीखे आठ पुत्रों को जन्म देने की भविष्यवाणी की थी। इस प्रकार सुलसा को भी मृतपुत्र होने की भविष्यवाणी की थी। सुलसा ने हरिणेगमेषी नामक देव की आराधना की और वह देव प्रसन्न हुआ। कथा प्रसंग के अनुसार देवकी और सुलसा साथ-साथ गर्भवती होती हैं और साथ-साथ प्रसव भी करती हैं। पुत्र प्रसव के समय वह देव सुलसा के मृत पुत्रों को देवकी के पास और देवकी के पुत्रों को सुलसा के पास रख देता था। इस प्रकार देवकी के प्रथम छ: पुत्र सुलसा के द्वारा पालित और पोषित हुए। कालान्तर में सलसा के ये छहो पत्र अरिष्टनेमि के पास दीक्षित हो गये। संयोग से किसी समय वे छहो सहोदर भाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229188
Book TitlePrakrit aur Apbhramsa Jain Sahitya me Krishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf
Publication Year2003
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & Mithology
File Size439 KB
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