SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय संस्कृति के दो प्रमुख घटकों का सहसम्बन्ध : १३ बृहारण्यकोपनिषद् में याज्ञवल्क्य और जनक का संवाद तथा याज्ञवल्क्य का अपनी पत्नियों- मैत्रेयी और कात्यायनी का संवाद औपनिषदिक ऋषियों के श्रमणधारा से प्रभावित होने की घटना को ही अभिव्यक्त करते हैं (बृहदारण्यकोपनिषद् ४/५/ १ से ७ तक)। यहां हमने प्रसंगवश केवल प्राचीन माने जाने वाले कुछ उपनिषदों के ही संकेत प्रस्तुत किये हैं। परवर्ती उपनिषदों में तो श्रमणधारा से प्रभावित यह आध्यात्मिक चिंतन अधिक विस्तार और स्पष्टता से उपलब्ध होता है। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि वैदिक धारा ब्राह्मणों और आरण्यकों से गुजरते हुए औपनिषदिक काल तक श्रमणधारा से मिलती है। यह श्रमणधारा एक ओर वैदिकधारा से समन्वित होकर कालक्रम में सनातन हिन्दू धर्म के रूप में विकसित होती है तो दूसरी ओर वैदिक धारा से अपने को अप्रभावित रखते हुए मूल श्रमणधारा- जैन, बौद्ध और आजीवक परम्परा के रूप में विभक्त होकर विकसित होती है। फिर भी जैन, बौद्ध और आजीवक सम्प्रदायों के नामकरण एवं विकास के पूर्व भी यह श्रमणधारा सामान्य रूप से प्रवाहित होती रही है। यही कारण है कि इन धाराओं के अनेक पूर्व पुरुष न केवल जैन, बौद्ध और आजीवक परम्परा में समान रूप में स्वीकृत हुए, किन्तु औपनिषदिक चिन्तन और उससे विकसित परवर्ती हिन्दू धर्म की विविध शाखाओं में भी समान रूप से मान्य किए गये हैं। यदि हम उपनिषदों में दिये गये ऋषिवंश, जैन ग्रन्थ ऋषिभाषित में उल्लेखित ऋषिगणों तथा बौद्ध ग्रन्थ थेरगाथा में उल्लेखित थेरों का तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करें तो हमें ऐसा लगता है कि औपनिषदिक, बौद्ध, जैन और आजीवक धाराएं अपनी पूर्व अवस्था में संकुचितता के घेरे से पूर्णतया मुक्त थीं और एक समन्वित मूलस्रोत का ही संकेत करती हैं। १. देवनारद, वज्जीपुत्त, असितदेवल, अंगिरस, भारद्वाज, पुष्पशालपुत्र, वल्कलचीरि, कुम्मापुत्र, केतलीपुत्र, महाकाश्यप, तैतलीपुत्र, मंखलीपुत्र (गोशालक), याज्ञवल्क्य, मेतज्यभयालीबाहुक (मेतार्यभयाली), मधुरायन, शोर्यायन, विदुर, वारिसेनकृष्ण, आर्यायन, उत्कट, गाथापतिपुत्र, गर्दभाल, रामपत्त, हरिगिरी, अम्बड़परिव्राजक, मातंग, वारत्तक, आद्रक, वर्धमान, वायु, पार्श्व, पिंग, महाशालपुत्र अरुण, ऋषिगिरी, उद्दालक, नारायण (वारायण), श्रीगिरी, सारिपुत्र, संजय, द्वैपायन, इन्द्रनाग, सोम, यम, वर्ण, वरुण, वैश्रमण आदि। (१) बृहदारण्यकोपनिषद् (बृहदा. ४/५) याज्ञवल्क्यीय परम्परा की सूची १. ब्रह्म ३१. औपजधनि २. परमेष्ठि ३२. त्रैवनी For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.229175
Book TitleBharatiya Sanskruti ke Do Pramukh Maha Ghatako ka Sambandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf
Publication Year2003
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & Culture
File Size460 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy