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________________ पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई। तइयाए भिक्खायरियं पुणो चउत्थीए सज्झायं।। रत्तिं पि चउरो भागे भिक्खू कुज्जा वियक्खणो। तओ उत्तरगुणे कुज्जा राइभाएसु चउसु वि।। पढमं पोरिसि सज्झायं बीयं झाणं झियायई। तइयाए निद्दमोक्खं तु चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं।। - उत्तराध्ययनसूत्र, २६/११,१२,१७, १८. मुनि दिन के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करे, दूसरे प्रहर में ध्यान करे, तीसरे में भिक्षाचर्या एवं दैहिक आवश्यकता की निवृत्ति का कार्य करे। पुन: चतुर्थ प्रहर में स्वाध्याय करे। इसी प्रकार रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में निद्रा व चौथे में पुनः स्वाध्याय का निर्देश है। इस प्रकार मुनि प्रतिदिन चार प्रहर अर्थात् १२ घण्टे स्वाध्याय में रत रहे, दूसरे शब्दों में साधक जीवन का आधा भाग स्वाध्याय के लिए नियत था। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन परम्परा में स्वाध्याय की महत्ता प्राचीन काल से ही सुस्थापित रही, क्योंकि यही एक ऐसा माध्यम था जिसके द्वारा व्यक्ति के अज्ञान का निवारण तथा आध्यात्मिक विशुद्धि सम्भव थी। सत्साहित्य के अध्ययन की दिशाएँ __ सत्साहित्य के पठन के रूप में स्वाध्याय की क्या उपयोगिता है? यह सुस्पष्ट है। वस्तुत: सत्साहित्य का अध्ययन व्यक्ति की जीवनदृष्टि को ही बदल देता है। ऐसे अनेक लोग हैं, जिनकी सत्साहित्य के अध्ययन से जीवन की दिशा ही बदल गयी। स्वाध्याय एक ऐसा माध्यम है, जो एकान्त के क्षणों में हमें अकेलापन महसूस नहीं होने देता और एक सच्चे मित्र की भाँति सदैव साथ देता है और मार्गदर्शन करता है। वर्तमान युग में यद्यपि लोगों में पढ़ने-पढ़ाने की रुचि विकसित हुई है, किन्तु हमारे पठन की विषय-वस्तु सम्यक् नहीं है। आज के व्यक्ति के पठन-पाठन का मुख्य विषय पत्र-पत्रिकाएँ हैं। इनमें मुख्य रूप से वे ही पत्रिकाएँ अधिक पसन्द की जा रही हैं, जो वासनाओं को उभारने वाली तथा जीवन के विद्रूपित पक्ष को यथार्थ के नाम पर प्रकट करने वाली हैं। आज समाज में नैतिक मूल्यों का जो पतन हो रहा है उसका कारण हमारे प्रसार माध्यम भी हैं। इन माध्यमों में पत्र-पत्रिकाएँ तथा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन प्रमुख हैं। आज स्थिति ऐसी है कि ये सभी अपहरण, बलात्कार, गबन, डकैती, चोरी, हत्या इन सबकी सूचनाओं से भरे होते हैं और हम उनके पढ़ने और देखने में अधिक रस लेते हैं। इनके दर्शन और प्रदर्शन से हमारी जीवनदृष्टि ही विकृत हो चुकी है। आज सच्चरित्र व्यक्तियों एवं उनके जीवन वृत्तान्तों की सामान्य रूप से इन माध्यमों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229162
Book TitleSwadhyaya ki Maniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_4_001687.pdf
Publication Year2001
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ritual
File Size321 KB
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