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________________ जैनधर्म में अचेलकत्व और सचेलकत्व का प्रश्न मात्र था। हो सकता है कि उन्होंने मात्र अपनी कुल परम्परा अर्थात् पाश्र्वापत्य परम्परा का अनुसरण किया हो। श्वेताम्बर आचार्य उसकी व्याख्या में इन्द्र द्वारा प्रदत्त देवदुष्य वस्त्र ग्रहण करने की बात कहते हैं। यह मात्र परम्परागत विश्वास है, इस सम्बन्ध में कोई प्राचीन उल्लेख नहीं है। आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध का . उपधानश्रुत मात्र वस्त्र ग्रहण की बात कहता है। वह वस्त्र इन्द्र द्वारा प्रदत्त देवदुष्य था, ऐसा उल्लेख नहीं करता। मेरी दृष्टि में इस 'अनुधर्म' में 'अनु' शब्द का अर्थ वही है जो अणुव्रत में 'अनु' शब्द का है अर्थात् आंशिक त्याग । वस्तुतः महावीर का लक्ष्य तो पूर्ण अचेलता का था, किन्तु प्रारम्भ में उन्होंने वस्त्र का आंशिक त्याग ही किया था। जब एक वर्ष की साधना से उन्हें यह दृढ़ विश्वास हो गया कि वे अपनी काम वासना पर पूर्ण विजय प्राप्त कर चुके हैं और दो शीतकालों के व्यतीत हो जाने से उन्हें यह अनुभव हो गया कि उनका शरीर उस शीत को सहने में पूर्ण समर्थ है, तो उन्होंने वस्त्र का पूर्ण त्याग कर दिया । २४ ज्ञातव्य है कि महावीर ने दीक्षित होते समय मात्र सामायिक चारित्र ही लिया था, महाव्रतों का ग्रहण नहीं किया था । श्वेताम्बर आगमों का कथन है कि सभी तीर्थङ्कर एक देवदुष्य लेकर सामायिक चारित्र की प्रतिज्ञा से ही दीक्षित होते हैं। २५ यह इसी तथ्य को पुष्ट करता है कि सामायिक चारित्र से दीक्षित होते समय एक वस्त्र ग्रहण करने की परम्परा रही होगी । ८५ निष्कर्ष यह है कि महावीर की साधना का प्रारम्भ सचेलता से हुआ किन्तु उसकी परिनिष्पत्ति अचेलता में हुई । महावीर की दृष्टि में सचेलता अणुधर्म था और अचेलता मुख्य धर्म था। महावीर द्वारा वस्त्र-ग्रहण करने में उनके कुलधर्म अर्थात् पाश्र्वापत्य परम्परा का प्रभाव हो सकता है किन्तु पूर्ण अचेलता का निर्णय या तो उनका स्वतःस्फूर्त था या फिर आजीवक परम्परा का प्रभाव। यह सत्य है कि महावीर पार्श्वापत्य परम्परा से प्रभावित रहे हैं और उन्होंने पार्वापत्य परम्परा के दार्शनिक सिद्धान्तों को ग्रहण भी किया है, किन्तु वैचारिक दृष्टि से पार्श्वपत्यों के निकट होते हुए भी आचार की दृष्टि से वे उनसे सन्तुष्ट नहीं थे । पार्श्वपत्यों के शिथिलाचार के उल्लेख और उसकी समालोचना जैनधर्म की सचेल और अचेल दोनों परम्पराओं के साहित्य में मिलती है। यही कारण था कि महावीर ने पार्वापत्यों की आचार व्यवस्था में व्यापक सुधार किये। सम्भव है कि अचेलता के सम्बन्ध में वे आजीवकों से प्रभावित हुए हों। हर्मन जैकोबी आदि पाश्चात्य विद्वानों ने भी इस सन्दर्भ में महावीर पर आजीवकों का प्रभाव होने की सम्भावना को स्वीकार किया है। हमारे कुछ दिगम्बर विद्वान् यह मत रखते हैं कि महावीर की अचेलता For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.229144
Book TitleJain Dharm me Achelkatva aur Sachelkatva ka Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_3_001686.pdf
Publication Year1997
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ritual
File Size783 KB
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