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जैन धर्म का लेश्या-सिद्धान्त : एक विमर्श : 153
मात्रात्मक अन्तरों के तीन, नव, इक्यासी और दो सौ तैंतालिस उपभेद भी गिनायें हैं. लेकिन प्राचीन षट्-विध वर्गीकरण ही अधिक प्रचलित रहा है। निम्न पंक्तियों में हम इन छ: प्रकार के व्यक्तियों की चर्चा करेंगे ----
1. कृष्ण लेश्या ( अशुभ भाव ) से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण -- यह व्यक्तित्व का सबसे निकृष्ट रूप है। इस अवस्था में प्राणी के विचार अत्यन्त निम्न कोटि के एवं क्रूर होते हैं। वासनात्मक पक्ष जीवन के सम्पूर्ण कर्मक्षेत्र पर हावी रहता है। प्राणी अपनी शारीरिक, मानसिक एवं वाचिक क्रियाओं पर नियन्त्रण करने में अक्षम रहता है। वह अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण न रख पाने के कारण बिना किसी प्रकार के शुभाशुभ विचार के सदैव इन्द्रियों के विषयों की पूर्ति में निमान रहता है। इस प्रकार भोग-विलास में आसक्त हो, वह उनकी पूर्ति के लिए हिंसा, चोरी, व्यभिचार और संग्रह में लगा रहता है। स्वभाव से वह निर्दय व नृशंस होता है और हिंसक कार्य करने में उसे तनिक भी अरुचि नहीं होती तथा अपने छोटे से स्वार्थ के निमित्त दूसरे का बड़ा से बड़ा अहित करने में वह संकोच नहीं करता।10 मात्र यही नहीं वह दूसरों को निरर्थक पीडा या त्रास देने में आनन्द मानता है। कृष्ण लेश्या से युक्त प्राणी वासनाओं के अन्ध प्रवाह से ही शासित होता है इसलिए भावावेश में उसमें स्वयं के हिताहित का विचार करने की क्षमता भी नहीं होती। वह दूसरे का अहित मात्र इसलिए नहीं करता कि उससे उसका स्वयं का कोई हित होगा, वरन् वह तो अपने क्रूर स्वभाव के वशीभूत हो, अपने हित के अभाव में भी दूसरे का अहित करता रहता है।
2. नील लेश्या ( अशुभतर मनोभाव ) से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण -- व्यक्तित्व का यह प्रकार पहले की अपेक्षा कुछ ठीक होता है, लेकिन होता अशुभ ही है। इस अवस्था में भी प्राणी का व्यवहार वासनात्मक पक्ष से शासित होता है। लेकिन वह अपनी वासनाओं की पूर्ति में अपनी बुद्धि का प्रयोग करने लगता है। अतः इसका व्यवहार प्रकट रूप में तो कुछ परिमार्जित सा रहता है, लेकिन उसके पीछे कुटिलता ही काम करती है। यह विरोधी का अहित अप्रत्यक्ष रूप से करता है। ऐसा प्राणी ईर्ष्यालु, असहिष्णु, असंयमी, अज्ञानी, कपटी, निर्लज्ज, लम्पट, बुद्धि से युक्त, रसलोलुप एवं प्रमादी होता है। वह अपनी सुख-सुविधा का सदैव ध्यान रखता है और दूसरे का अहित अपने हित के निमित्त करता है, यद्यपि वह अपने अल्प हित के लिए दूसरे का बड़ा अहित भी कर देता है। जिन प्राणियों से उसका स्वार्थ सधता है उन प्राणियों का अज-पोषण-न्याय के अनुसार वह कुछ ध्यान अवश्य रखता है, लेकिन मनोवृत्ति दूषित ही होती है। जैसे बकरा पालने वाला बकरे को इसलिए नहीं खिलाता कि उस बकरे का हित होगा वरन् इसलिए खिलाता है कि उसे मारने पर अधिक मांस मिलेगा। ऐसा व्यक्ति दूसरे का बाह्य रूप में जो भी हित करता दिखाई देता है, उसके पीछे उसका गहन स्वार्थ रहता है।
3. कापोत लेश्या ( अशुभ मनोवृत्ति ) से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण -- यह मनोवृत्ति भी दृषित है। इन मनोवृत्ति में प्राणी का व्यवहार मन, वचन, कर्म से एकस्प नहीं होता ! उसकी करनी और कयनी भिन्न होती है। मनोभावों में सरलता नहीं होती, कपट और
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