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मन
इन्द्रियों के व्यापार या विषय
जीव का
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( 1 ) श्रोत्रेन्द्रिय का विषय शब्द है । शब्द तीन प्रकार का माना गया है शब्द, अजीव का शब्द और मिश्र शब्द । कुछ विचारक 7 प्रकार के शब्द मानते हैं । ( 2 ) चक्षु इन्द्रिय का विषय रंग-रूप है। रंग काला, नीला, पीला, लाल और श्वेत, पाँच प्रकार का है। शेष रंग इन्हीं के सम्मिश्रण के परिणाम हैं। ( 3 ) घ्राणेन्द्रिय का विषय गन्ध है । गन्ध दो प्रकार की होती है सुगन्ध और दुर्गन्ध । ( 4 ) रसना का विषय रसास्वादन है। रस 5 प्रकार के होते हैं कटु, अम्ल, लवण, तिक्त और कषाय । ( 5 ) स्पर्शन इन्द्रिय का विषय स्पर्शानुभूति है। स्पर्श आठ प्रकार के होते हैं उष्ण, शीत, स्क्ष, चिकना, हल्का, भारी, कर्कश और कोमल । इस प्रकार श्रोत्रेन्द्रिय के 3, चक्षुरिन्द्रिय के 5 घ्राणेन्द्रिय के 2, रसनेन्द्रिय के 5 और स्पर्शेन्द्रिय के 8, कुल मिलाकर पाँचों इन्द्रियों के 23 विषय होते हैं।
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शक्ति, स्वरूप और साधना : एक विश्लेषण : 105
जैन विचारणा में सामान्य रूप से यह माना गया है कि पाँचों इन्द्रियों के द्वारा जीव उपरोक्त विषयों का सेवन करता है। गीता में कहा गया है यह जीवात्मा श्रोत्र, चक्षु, त्वचा, रसना, घ्राण और मन के आश्रय से ही विषयों का सेवन करता है। 21
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विषय-भोग आत्मा को बाह्यमुखी बना देते है। प्रत्येक इन्द्रिय अपने-अपने विषयों की ओर आकर्षित होती है और इस प्रकार आत्मा का आन्तरिक समत्व भंग हो जाता है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि, "साधक शब्द, रूप, रस, गन्ध तथा स्पर्श इन पाँचों प्रकार के कामगुणों (इन्द्रिय-विषयों) को सदा के लिए छोड़ दे22 क्योंकि ये इन्द्रियों के विषय आत्मा में विकार उत्पन्न करते हैं।
इन्द्रियाँ अपने विषयों से किस प्रकार सम्बन्ध स्थापित करती हैं और आत्मा को उन विषयों से कैसे प्रभावित करती हैं इसकी विस्तृत व्याख्या प्रज्ञापनासूत्र और अन्य जैन ग्रन्थों में मिलती है। विस्तार भय से हम इस विवेचना में जाना नहीं चाहते है। हमारे लिए इतना ही जान लेना पर्याप्त है कि जिस प्रकार द्रव्यमन भावमन को प्रभावित करता है और भावमन से आत्मा प्रभावित होता है। उसी प्रकार द्रव्य - इन्द्रिय (Structural aspect of sense organ ) का विषय से सम्पर्क होता है और वह भाव - इन्द्रिय (Functional and Psychic aspect of sense organ ) को प्रभावित करती है और भाव-इन्द्रिय आत्मा की शक्ति होने के कारण उससे आत्मा प्रभावित होता है। नैतिक चेतना की दृष्टि से मन और इन्द्रियों के महत्व तथा स्वरूप के सम्बन्ध में यथेष्ट रूप से विचार कर लेने के पश्चात् यह जान लेना उचित होगा कि मन और इन्द्रियों का ऐसा कौन सा महत्त्वपूर्ण कार्य है जिसके कारण उन्हें नैतिक चेतना में इतना स्थान दिया जाता है।
वासनाप्राणीय व्यवहार का प्रेरक तत्त्व
मन और इन्द्रियों के द्वारा विषयों का सम्पर्क होता है। इस सम्पर्क से कामना उत्पन्न होती है। यही कामना या इच्छा नैतिकता की परिसीमा में आने वाले व्यवहार का आधारभूत प्रेरक तत्त्व है। सभी भारतीय आचार-दर्शन यह स्वीकार करते हैं कि वासना,
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