________________ 86 सकारात्मक अहिंसा की भूमिका सभी जीवा का क्षम। कुशल-मंगल करने वाली है। यह लोक-मंगलकारी अहिंसा जन-जन के कल्याण में तभी सार्थक सिद्ध होगी, जब इसके सकारात्मक पक्ष को उभार कर जन-साधारण के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा और करुणा एवं सेवा की अन्तश्चतना को जागत किया जावेगा। मानव समाज में से हिंसा, संघर्ष और स्वार्थपरता के विष को तभी समाप्त किया जा सकेगा, जब हम दूसरों की पीड़ा का स्व-संवहन करगं, उनकी पीड़ा हमारी पीड़ा बनेगी। इससे अहिंसा की जो धारा प्रवाहित होगी, वह सकारात्मक होगी और करुणा, मैत्री सहयोग एवं सेवा की जीवन मूल्यों को विश्व में स्थापित करेंगी। प्रस्तुत कृति में श्री कन्हैयालाल जी लोढ़ा ने अहिंसा के इस सकारात्मक पक्ष का अधिक स्पष्टता और आमिक प्रमाणों के साथ प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। श्री कन्हैया लाल जी लादा जैन-दर्शन के गम्भीर अध्यता हैं। उनकी लेखनी से प्रसूत यह ग्रन्थ अहिंसा के सकारात्मक पक्ष का जन-साधारण क समक्ष प्रस्तुत करने में सफल होगा। कृति के प्रारम्भ में श्री देवेन्द्रराज मेहता का संक्षिप्त प्राक्थन भी महत्त्वपूर्ण है। वे रोगियों और समाज के उपेक्षित ख प्रताडित वर्ग की सेवा के कार्य में प्रारम्भ ग ही जुड़े हुए हैं, वे सकारात्मक अहिंसा की जीवन्त प्रतिमूर्ति है। प्रस्तुत कृति का प्रणयन भी उन्हीं की प्रेरणा से हुआ है। कृति के उत्तरार्द्ध में विभिन्न विचारकों के विचारों का संकलन किया गया है। इससे भी अहिंसा के सकारात्मक पक्ष की पुष्टि में सहयोग मिलंगा। प्रस्तुत कृति क माध्यम से जन-जन में निष्काम प्रेम, करुणा और सेवा की भावना जागृत हा एक इसी आशा के साथ... / ॐ प्रो. गागरमल जैन, निदेशक, पार्श्वनाथ शोधपीठ, वाराणसी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org