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प्रो. सागरमल जैन
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4. प्रो. काशीप्रसाद जायसवाल19 इन्होंने अपने लेख आइडेन्टीफिकेशन आफ
कल्की में मात्र दो परम्पराओं का उल्लेख किया है। महावीर की निर्वाण तिथि का निर्धारण नहीं
किया है। 5. एस. व्ही. वैक्टेश्वर20 ई. पू. 437 इनकी मान्यता अनन्द विक्रम संवत् पर
आधारित है। यह विक्रम संवत के 90 वर्ष बाद
प्रचलित हुआ था। 6. पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार21 ई.पू. 528 इन्होंने अनेक तर्कों के आधार पर परम्परागत
मान्यता को पुष्ट किया। 7. मुनि श्री कल्याणविजय22 ई.पू. 528 इन्होंने भी परभ्यरागत मान्यता की पुष्टि करते
हुए उसकी असंगति के निराकरण का प्रयास
किया है। 8. प्रो. पी. एच. एल इगरमोण्ट23 ई.पू. 252 इनके तर्क का आधार जैन परम्परा में
तिष्याप्त की संघभेद की घटना का जो महावीर के जीवनकाल में उनके कैवल्य के 18वें वर्ष में घटित हुई, बौद्ध संघ में तिष्यरक्षिता द्वारा बोधि वृक्ष को सुखाने तथा संघभेद की घटना से जो अशोक के
राज्यकाल में हुई थी समीकृत कर लेना है। 9. वी. ए. स्मिथ24 ई.पू 527 इन्होंने सामान्यतया प्रचलित अवधारणा को
मान्य कर लिया है। 10. प्रो. के. आर. नारमन25 लगभग ई.पू. 400
भगवान महावीर की निर्वाण तिथि का निर्धारण करने हेतु जैन साहित्यिक स्रोतों के साथ-साथ हमें अनुश्रुतियों और अभिलेखीय साक्ष्यों पर भी विचार करना होगा। पूर्वोक्त मान्यताओं में कौन सी मान्यता प्रामाणिक है, इसका निश्चय करने के लिये हम तुलनात्मक पद्धति का अनुसरण करेंगे और यथासम्भव अभिलेखीय साक्ष्यों को प्राथमिकता देंगे।
भगवान महावीर के समकालिक व्यक्तियों में भगवान बुद्ध, बिम्बसार, श्रेणिक और अजातशत्रु कूणिक के नाम सुपरिचित हैं। जैन स्रोतों की अपेक्षा इनके सम्बन्ध में बौद्ध स्रोत हमें अधिक जानकारी प्रदान करते हैं। जैन स्रोतों के अध्ययन से भी इनकी समकालिकता पर कोई सन्देह नहीं किया जा सकता है। जैन आगम साहित्य बुद्ध के जीवन वृतान्त के सम्बन्ध में प्रायः मौन है, किन्तु बौद्ध त्रिपिटक साहित्य में महावीर और बुद्ध की समकालिक उपस्थिति के अनेक
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