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________________ 208 नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्षिन्तन काम के विषय में पहले विवेचन किया जा चुका है।20 यह विवेचन भी हमें दशवैकालिकनियुक्ति की गाथा 161 से 163 तक में मिल जाता है।21 उपरोक्त दोनों सूचनाओं के आधार पर यह बात सिद्ध होती है कि उत्तराध्ययननियुक्ति दशवकालिकनियुक्ति के बाद ही लिखी गयी। 3. आवश्यकनियुक्ति के बाद दशवौकलिकनियुक्ति और फिर उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना हुई, यह तो पूर्व चर्चा से सिद्ध हो चुका है। इन तीनों नियुक्तियों की रचना के पश्चात् आचारांगनियुक्ति की रचना हुई है, क्योंकि आचारांग नियुक्ति की गाथा 5 में कहा गया है .. 'आयारे अंगम्मि य पुवुदिदट्ठा चउक्कयं निक्खेयो' -- आचार और अंग के निक्षेपों का विवेचन पहले हो चुका है।22 दशवकालिकनियुक्ति में दशवैकालिकसूत्र के क्षुल्लकाधार अध्ययन की नियुक्ति (गाथा 79-88) में आचार' शब्द के अर्थ का विवेचन22 तथा उत्तराध्ययननियुक्ति में उत्तराध्ययनसूत्र के तृतीय 'चतुरंग अध्ययन की नियुक्ति करते हुए गाथा 143-144 में 'अंग शब्द का विवेचन किया है।23 अतः यह सिद्ध होता है कि आवश्यक, दशवैकालिक एवं उत्तराध्ययन के पश्चात् ही आचारोगनियुक्ति का कम है। इसी प्रकार आचारांग की चतुर्थ विमुक्तिचूलिका की नियुक्ति में 'विमुक्ति शब्द की नियुक्ति करते हुए गाथा 331 में लिखा है कि 'मोक्ष शब्द की नियुक्ति के अनुसार ही विमुक्ति शब्द की नियुक्ति भी समझना चाहिए।24 चूंकि उत्तराध्ययन के अट्ठावीसवें अध्ययन की नियुक्ति (गाथा 497-98 ) में मोक्ष शब्द की नियुक्ति की जा चुकी थी।25 अतः इससे यही सिद्ध हुआ कि आधारोगनियुक्ति का क्रम उत्तराध्ययन के पश्चात् है। आवश्यकनियुक्ति, दशवैकालिकनियुक्ति, उत्तराध्ययननियुक्ति एवं आचारांगनियुक्ति के पश्चात् सूत्रकृतांगनियुक्ति का क्रम आता है। इस तथ्य की पुष्टि इस आधार पर भी होती है कि सूत्रकृतांगनियुक्ति की गाथा 99 में यह उल्लिखित है कि 'धर्म शब्द के निक्षेपों का विवेचन पूर्व में हो चुका है (धम्मोपवुदिदट्ठो) 126 दशवकालिकनियुक्ति में दशकालिकसूत्र की प्रथम गाथा का विवेचन करते समय धर्म शब्द के निक्षेपों का विवेचन हुआ है। इससे यह सिद्ध होता है कि सूत्रकृतांगनियुक्ति, दशवकालिकनियुक्ति के बाद निर्मित हुई है। इसी प्रकार सूत्रकृतागनियुक्ति की गाथा 127 में कहा है गंथोपुवुदिट्ठो!28 हम देखते हैं कि उत्तराध्ययननियुक्ति गाथा 267-268 में ग्रन्थ शब्द के निक्षेपों का भी कथन हुआ है।29 इससे सूत्रकृतागनियुक्ति भी दशवैकालिकनियुक्ति एवं उत्तराध्ययननियुक्ति से परवर्ती ही सिद्ध होती है। 4. उपर्युक्त पाँच नियुक्तियों के यथाक्रम से निर्मित होने के पश्चात् ही तीन छेद सूत्रों यथा -- दशाशूतस्कंध, बृहत्कल्प एवं व्यवहार पर नियुक्तियाँ भी उनके उल्लेख क्रम से ही लिखी गयीं है, क्योंकि दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति के प्रारम्भ में ही प्राचीनगोत्रीय सकल श्रुत के ज्ञाता और दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प एवं व्यवहार के रचयिता भद्रबाहु को नमस्कार किया गया है। इसमें भी इन तीनों ग्रन्थों का उल्लेख उसी क्रम से है जिस क्रम से नियुक्ति- लेखन की प्रतिज्ञा में है।30 अतः यह कहा जा सकता है कि इन तीनों ग्रन्थों की नियुक्तियाँ इसी क्रम में लिखी गयी होगी। उपर्युक्त आठ नियुक्तियों की रचना के पश्चात् ही सूर्यप्रज्ञप्ति एवं इसिभासियाइं की नियुक्ति की रचना होनी थी। इन दोनों ग्रन्थों पर नियुक्तियाँ लिखी भी गयीं या नहीं, आज यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229124
Book TitleNiryukti Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_1_001684.pdf
Publication Year1994
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationArticle & Agam
File Size703 KB
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