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________________ डॉ. सागरमल जैन 92 प्रकार पर्वतों में मेरुपर्वत एवं तारागणों में चन्द्र श्रेष्ठ है, उसी प्रकार सुविहित जनों के लिए संथारा श्रेष्ठ है। इसी में आगे 12 गाथाओं में संस्तारक के स्वरूप का विवेचन है। इस प्रसंग में यह बताया गया है कि कौन व्यक्ति समाधिमरण को ग्रहण कर सकता है ? यह ग्रन्थ क्ष्पक के लाभ एवं सुख की चर्चा करता है। इसमें संथारा ग्रहण करने वाले कुछ व्यक्तियों के उल्लेख है यथा -- सुकोशल ऋषि, अवन्ति-सुकुमाल, कार्तिकार्य, पाटलीपुत्र के चंदक-पुत्र ( सम्भवतः चन्द्रगुप्त) तथा चाणक्य आदि। ज्ञातव्य है कि इसकी अधिकांश कथाएँ यापनीय ग्रन्थ भगवतीआराधना में भी उपलब्ध होती हैं। विद्वानों से अनुरोध है कि संस्तारक एवं मरण-विभक्ति में वर्णित इन कथाओं की बृहत्कथा कोश तथा आराधना कोश से तुलना करें। अन्त में संस्तारक की भावनाओं का चित्रण है। इसकी अनेक गाथाएँ आतुरप्रत्याख्यान एवं चन्द्रवेध्यक प्रकीर्णक में भी मिलती हैं। श्वेताम्बर आगमसाहित्य में समाधिमरण के सम्बन्ध में सबसे विस्तत ग्रन्थ मरणविभक्ति है। वस्तुतः मरण विभक्ति एक ग्रन्थ न होकर समाधिमरण से सम्बन्धित प्राचीन आठ ग्रन्थों के आधार पर निर्मित हुआ एक संकलन ग्रन्थ है। यद्यपि इसमें इन आठ ग्रन्थों की गाथाएँ कहीं शब्द स्प से तो कहीं भाव रूप से ही गृहीत हैं। फिर भी समाधि मरण सम्बन्धित सभी विषयों को एक स्थान पर प्रस्तुत करने की दृष्टि से यह ग्रन्थ अति महत्त्वपूर्ण है। इसमें 663 गाथाएँ हैं। यह ग्रन्थ संक्षिप्त होते हुए भी भगवतीआराधना के समान ही अपने विषय को समग्र रूप से प्रस्तुत करता है। विस्तार भय से यहां इसकी समस्त विषय-वस्तु का प्रतिपादन कर पाना सम्भव नहीं है। इसमें 14 द्वार अर्थात् अध्ययन हैं। इस ग्रन्थ में भी संस्तारक के समान ही पण्डित मरणपूर्वक मुक्ति प्राप्त करने वाले साधकों के दृष्टान्त है। जिनमें से अधिकांश भगवतीआराधना एवं संस्तारक में मिलते है। इसी ग्रन्थ में अनित्य आदि बारह भावनाओं का भी विवेचन है। __इसके अतिरिक्त आराधनाफ्ताका नामक एक ग्रन्थ और है। यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। कुछ विद्वानों का ऐसा कहना है कि यह ग्रन्थ यापनीय ग्रन्थ भगवतीआराधना के आधार पर आचार्य वीरभद्र द्वारा निर्मित हुआ है, किन्तु इस ग्रन्थ में भक्त-परिज्ञा, पिण्डनियुक्ति और आवश्यक- नियुक्ति की अनेकों गाथाएँ भी हैं। अत: यह किस ग्रन्थ के आधार पर निर्मित हुआ है, यह शोध का विषय है। इसी प्रकार श्वेताम्बर परम्परा में समाधिमरण से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ परवर्ती श्वेताम्बराचार्यों द्वारा भी लिखे गये हैं, जिनमें पूर्ण विस्तार के साथ समाधिमरण सम्बन्धी विवरण है किन्तु ये ग्रन्थ परवर्तीकाल के हैं, और हम अपने विषय को अर्धमागधी आगमसाहित्य तक ही सीमित रखने के कारण इनकी विशेष चर्चा यहां नहीं करना चाहेंगे। यह समस्त चर्चा भी हमने संकेत स्प में ही की है। विद्वानों से अनुरोध है कि वे इस तुलनात्मक अध्ययन को आगे बढ़ायें। इस सम्बन्ध में अनेक आगमिक व्याख्या ग्रन्थ जैसे आचारांग नियुक्ति, सूत्रकृतांग नियुक्ति, आवश्यक नियुक्ति, निशीथभाष्य, बृहत्कल्प भाष्य, व्यवहार भाष्य, निशीथचूर्णि आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229115
Book TitleArdhamagadhi Agam Sahitya me Samadhi Maran ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_1_001684.pdf
Publication Year1994
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & Agam
File Size448 KB
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