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निवृत्तिकुल का संक्षिप्त इतिहास
वि० सं० १२८८ / ई० स० १२३२ का एक लेख, जो नेमिनाथ की धातु की सपरिकर प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, में निवृत्तिगच्छ के आचार्य शीलचन्द्रसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है। नाहटा २७ द्वारा इस लेख की वाचना इस प्रकार दी गयी है :
Vol. II-1996
सं. १२८८ माघ सुदि ९ सोमे निवृत्तिगच्छ श्रे० वीहड़ि सुत यसहन देल्हादि पिवर श्रेयसे नेमिनाथ कारितं प्र. श्री शीलचन्द्रसूरिभिः
प्राप्तिस्थान- महावीर स्वामी का मंदिर, बीकानेर |
वि० सं० १३०१ / ई० स० १२४५ का एक लेख, जो शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, में इस गच्छ के आम्रदेवसूरि का उल्लेख प्राप्त होता है। मुनि कान्तिसागर " ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है :
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सं० १३०१ वर्षे हुंबडज्ञातीय निवृत्तिगच्छे श्रे० जरा (श) वीर पुत्र रेना सहितेन स्वश्रेयसे शांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठिता श्रीयाम्रदेवसूरिभिः ॥
प्राप्तिस्थान- बालावसही, शत्रुञ्जय।
वि० सं० १३७१ / ई० स० १३१५ में इसी कुल के पार्श्वदेवसूरि के शिष्य अम्बदेवसूरि ने समरारासु ” की रचना की । पार्श्वदेवसूरि के गुरु कौन थे, क्या अम्बदेवसूरि के अलावा पार्श्वदेवसूरि के अन्य शिष्य भी थे, इन सब बातों को जानने के लिये हमारे पास इस वक्त कोई प्रमाण नहीं है।
वि० सं० १३८९ / ई. स. १३२३ का एक लेख, जो पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, में इस कुल के पार्श्वदत्तसूरि का उल्लेख प्राप्त होता है। मुनि बुद्धिसागर ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है :
सं. १३८९ वर्षे वैशाख सुदि ६ बुधे श्री निवृत्तिगच्छे हूवट (हुंबड) ज्ञा. पितृपीमडमातृपीमलदेश्रेयसे श्रीपद्मप्रभस्वामि बिंबं का० प्र० श्रीपार्श्वदत्तसूरिभि: ।
प्राप्तिस्थान- मनमोहनपार्श्वनाथ जिनालय, बड़ोदरा ।
इस गच्छ का विक्रम की १५वीं शताब्दी का केवल एक लेख मिला है, जो वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। आचार्य विजयधर्मसूरि" ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है :
सं. १४६९ वर्षे फागुण वदि २ शुक्रे हूंबडज्ञातीय ठ० देपाल भा० सोहग पु० ठ० राणाकेन भातृपितृ श्रेयसे श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं निवृत्तिमच्छे श्रीसूरिभिः ||श्रीः ||
श्री पूरनचन्द नाहर ने भी इस लेख की वाचना दी है, किन्तु उन्होंने वि० सं० १४६९ को १४९६ पढ़ा है। इन दोनों वाचनाओं में कौन सा पाठ सही है, इसका निर्णय तो इस लेख को फिर से देखने से ही संभव है ।
निवृत्तिगच्छ से सम्बद्ध एक और लेख एक चतुर्विंशतिपट्ट पर उत्कीर्ण है। श्री नाहर ने इसे वि० सं० १५०६ (?) का बतलाया है और इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है :
॥ श्रीमन्निवृतगच्छे संताने चाम्रदेव सूरीणां । महणं गणि नामाद्या चेल्ली सर्व्वदेवा गणिनी। वित्तं नीतिश्रमायातं वितीर्य शुभवारया । चतुर्विंशति पट्टाकं कारयामास निर्मलं ।
प्राप्तिस्थान आदिनाथ जिनालय, कलकत्ता ।
इस गच्छ का एक लेख वि० सं० १५२९ / ई० स० १४७३ का भी है। पं० विनयसागर ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है :
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