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________________ शिवप्रसाद Nirgrantha वाचक हरिगुप्त [तोरमाण के गुरु] कवि देवगुप्त [सुपुरुषचरिय या त्रिपुरुषचरिय के रचनाकार] शिवचन्द्रगणि महत्तर [भिन्नमाल में स्थिरवास नाग वृन्द दुर्ग मम्मट अग्निशर्मा वटेश्वर तत्त्वाचार्य दाक्षिण्यचिहन उद्योतनसूरि यक्षमहत्तर कृष्णर्षि - जयसिंहसूरि [प्रथम] [वि० सं०९१५] [वि० सं० १२८७, प्रतिमालेख नयचन्द्रसूरि [प्रथम] जयसिंहसूरि (द्वितीय [वि० सं० १३०१ में मरुभूमि में भीषण ताप के समय मंत्रशक्ति से जल निकाल कर संघ की प्राणरक्षा की] प्रभावकशिरोमणि प्रसन्नचन्द्रसूरि [प्रथम] महेन्द्रसूरि निस्पृहशिरोमणि मुहम्मदशाह द्वारा सम्मानित जयसिंहसूरि [तृतीय] [वि० सं० १४२२ / ई० स० १३६६ में कुमारपालचरित एवं न्यायतात्पर्यदीपिका के रचनाकार] प्रसन्नचन्द्रसूरि [द्वितीय] नयचन्द्रसूरि द्वितीय] [वि० सं० १४४४ / ई० स० १३८८ के आसपास हम्मीरमहाकाव्य एवं रम्भामंजरीनाटिका के रचयिता] प्रसन्नचन्द्रसूरि [तृतीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229088
Book TitleKrushnarshi Gaccha ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherZ_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf
Publication Year1995
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Sangh
File Size417 KB
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