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________________ जीव और आत्मा ५२४ शेषिक आदि दर्शनों में सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, श्रादि अात्मा के लक्षण बतलाए हैं सो व्यवहार नय की अपेक्षा से । (१३) प्र०-क्या जीव और आत्मा इन दोनों शब्दों का मतलब एक है ? उ.-हो, जैनशास्त्र में तो संसारी असंसारी सभी चेतनों के विषय में 'जीव और आत्मा', इन दोनों शब्दों का प्रयोग किया गया है, पर वेदान्त' आदि दर्शनों में जीव का मतलब संसार-अवस्था वाले ही चेतन से है, मुक्तचेतन से नहीं, और आत्मा शब्द तो साधारण है। (१४) प्र०-आपने तो जीव का स्वरूप कहा, पर कुछ विद्वानों को यह कहते सुना है कि आत्मा का स्वरूप अनिर्वचनीय अर्थात् वचनों से नहीं कहे. जा सकने योग्य है, सो इसमें सत्य क्या है ? उ.-उनका भी कथन युक्त है क्योंकि शब्दों के द्वारा परिमित भाव प्रगट किया जा सकता है। यदि जीव का वास्तविक स्वरूप पूर्णतया जानना हो तो वह अपरिमित होने के कारण शब्दों के द्वारा किसी तरह नहीं बताया जा सकता। इसलिए इस अपेक्षा से जीव का स्वरूप अनिर्वचनीय' है। इस बात को जैसे अन्य दर्शनों में निर्विकल्प ४ शब्द से या , १ 'जीवो हि नाम चेतनः शरीराध्यक्ष प्राणानां धारयिता ।' -- ब्रह्मसूत्र भाष्य, पृष्ठ १०६, अ० १, पाद १, अ. ५, सू० ६ । अर्थात-जीव वह चेतन है जो शरीर का स्वामी है और प्राणों को धारण करने वाला है। २ जैसे-'आत्मा वा अरे श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः' इत्यादिक —बृहदारण्यक २।४।५। ३ 'यतो वाचो निवर्तन्ते, न यत्र मनसो गतिः । शुद्धानुभवसंवेद्य, तद्रपं परमात्मनः ॥' द्वितीय, श्लोक ४ ॥ ४ "निरालम्नं निराकार, निर्विकल्पं निरामयम्। श्रात्मनः परमं ज्योति-निरूपाधि निरञ्जनम् ॥" प्रथम, १ । 'धावन्तोऽपि नया नैके, तत्स्वरूपं स्पृशन्ति न । समुद्रा इव कल्लोलैः, कृतप्रतिनिवृत्तयः ॥ द्वि०, ८ || 'शब्दोपरक्ततद्रूपबोधकनयपद्धतिः। निर्विकल्पं तु तद्रूपं गम्यं नानुभवं विना ।।' द्वि०, ६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229080
Book TitleJiv aur Panch Parmeshthi ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherZ_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf
Publication Year1957
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & Panch Parmesthi
File Size88 KB
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