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________________ 532.. जैन धर्म और दर्शन . की भावना भाना सिद्ध-भक्ति है और योगियों ( मुनियों) के गुणों की भावना भाना योगि-भक्ति। , (35) प्र०—पहिले अरिहन्तों को और पीछे सिद्धादिकों को नमस्कार करने का क्या सबब है ? . उ०-वस्तु को प्रतिपादन करने के क्रम दो होते हैं / एक पूर्वानुपूर्वी और दूसरा पश्चानुपूर्वी / प्रधान के बाद अप्रधान का कथन करना पूर्वानुपूर्वी है और अप्रधान के बाद प्रधान का कथन करना पश्चानुपूर्वी है। पाँचों परमेष्ठियों में 'सिद्ध' सबसे प्रधान हैं और 'साधु' सबसे अप्रधान, क्योंकि सिद्ध-अवस्था चैतन्य शक्ति के विकास की आखिरी हद्द है और साधु-अवस्था उसके साधन करने की प्रथम भूमिका है। इसलिए यहाँ पूर्वानुपूर्वी कम से नमस्कार किया गया है। (36) प्र०- अगर पाँच परमेष्ठियों की नमस्कार पूर्वानुपूर्वी क्रम से किया गया है तो पहिले सिद्धों को नमस्कार किया जाना चाहिए, अरिहन्तों को कैसे ? उ०--यद्यपि कर्म विनाश की अपेक्षा से 'अरिहन्तों' से सिद्ध' श्रेष्ठ हैं / तो भी कृतकस्यता की अपेक्षा से दोनों समान ही हैं और व्यवहार की अपेक्षा से तो 'सिद्ध' से 'अरिहन्त' ही श्रेष्ठ हैं / क्योंकि 'सिद्धों' के परोक्ष स्वरूप को बतलाने वाले 'अरिहन्त' ही तो है। इसलिए व्यवहार अपेक्षया 'अरिहन्तों को श्रेष्ठ गिनकर पहिले उनको नमस्कार किया गया है। ई० 1621] [पंचप्रतिक्रमण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229080
Book TitleJiv aur Panch Parmeshthi ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherZ_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf
Publication Year1957
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & Panch Parmesthi
File Size88 KB
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