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________________ २३२ जैन धर्म और दर्शन पर फिर भी उसका प्रादुर्भाव हो जाता है । इसी प्रकार जो शक्ति प्रादुर्भूत हुई होती है वह भी सदा के लिए नहीं । प्रतिकूल निमित्त मिलते ही उसका तिरोभाव हो जाता है। उदाहरणार्थं पानी के अणुओं को लीजिए, वे गरमी पाते ही भापरूप में परिमात हो जाते हैं, फिर शैत्य आदि निमित्त मिलते ही पानीरूप में बरसते हैं और अधिक शीतत्व प्राप्त होने पर द्रवत्वरूप को छोड़ बर्फरूप में धनत्व को प्रात कर लेते हैं। • इसी तरह यदि जड़त्व चेतनत्व दोनों शक्तियों को किसी एक मूल तत्वगत मान लें, तो विकासवाद ही न ठहर सकेगा। क्योंकि चेतनत्व शक्ति के विकास के कारण जो आज चेतन (प्राणी) समझे जाते हैं वे ही सब जड़त्वशक्ति का विकास होने पर फिर जड़ हो जाएँगे। जो पाषाण आदि पदार्थ आज जरूप में दिखाई देते हैं वे कभी चेतन हो जाएँगे और चेतनरूप से दिखाई देनेवाले मनुष्य, पशु-पक्षी आदि प्राणी कभी जड़रूप भी हो जाएँगे। अतएव एक-एक पदार्थ में जड़त्व और चेतनत्व दोनों विरोधिनी शक्तियों को न मानकर जड़ व चेतन दो स्वतंत्र तत्त्वों को ही मानना ठीक है। • (ङ) शास्त्र व महात्माओं का प्रामाण्य-अनेक पुरातन शास्त्र भी आत्मा के स्वतंत्र अस्तित्व का प्रतिपादन करते हैं। जिन शास्त्रकारों ने बड़ी शान्ति व गम्भीरता के साथ श्रात्मा के विषय में खोज की है, उनके शास्त्रगत अनुभव को यदि हम बिना ही अनुभव किये चपलता से यों ही हँस दें तो, इसमें क्षुद्रता किसकी ? आजकल भी अनेक महात्मा ऐसे देखे जाते हैं कि जिन्होंने अपना जीवन पवित्रता पूर्वक श्रात्मा के विचार में ही बिताया। उनके शुद्ध अनुभव को हम यदि अपने भ्रान्त अनुभव के बल पर न मानें तो इसमें न्यूनता हमारी ही है। पुरातन शास्त्र और वर्तमान अनुभवी महात्मा निःस्वार्थ भाव से आत्मा के अस्तित्व को बतला रहे हैं। (च) आधुनिक वैज्ञानिकों की सम्मति- आजकल लोग प्रत्येक विषय का खुलासा करने के लिए बहुधा वैज्ञानिक विद्वानों का विचार जानना चाहते हैं। यह ठीक है कि अनेक पश्चिमीय भौतिक-विज्ञान विशारद आत्मा को नहीं मानते या उसके विषय में संदिग्ध हैं। परन्तु ऐसे भी अनेक धुरन्धर वैज्ञानिक है कि जिन्होंने अपनी सारी आयु भौतिक खोज में बिताई है, पर उनकी दृष्टि भूतों से परे आत्मतत्त्व की ओर भी पहुँची है। उनमें से सर ऑलीवर लॉज और लॉर्ड केलविन, इनका नाम वैज्ञानिक संसार में मशहूर है । ये दोनों विद्वान् चेतन तत्व को जड़ से जुदा मानने के पक्ष में हैं। उन्होंने जड़वादियों की युक्तियों का खण्डन बड़ी सावधानी से व विचारसरणी से किया है। उनका मन्तब्य है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229065
Book TitleKarmvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherZ_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf
Publication Year1957
Total Pages33
LanguageHindi
ClassificationArticle & Karma
File Size137 KB
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