________________
कर्मवाद
२२५.
कर्मकाण्डी मीमांसक, यज्ञ याग आदि क्रिया-कलाप अर्थ में स्मार्त विद्वान्, ब्राह्मण आदि चार वर्णों और ब्रह्मचर्य्यं श्रादि चार श्राश्रमों के नियत कर्मरूप अर्थ में; पौराणिक लोग व्रत नियम श्रादि धार्मिक क्रियाओं के अर्थ में; वैयाकरण लोग, कर्त्ता जिसको अपनी क्रिया के द्वारा पाना चाहता है उस अर्थ में अर्थात् जिस पर कर्ता के व्यापार का फल गिरता है उस अर्थ में; और नैयायिक लोग उत्क्षेपण आदि पाँच सांकेतिक कर्मों में कर्म शब्द का व्यवहार करते हैं । परन्तु जैन शास्त्र में कर्म शब्द से दो अर्थ लिये जाते हैं । पहला राग-द्वेषात्मक परिणाम, जिसे कषाय । भाव कर्म ) कहते हैं और दूसरा कार्मण जाति के पुद्गल विशेष, जो कषाय के निमित्त से आत्मा के साथ चिपके हुए होते हैं और द्रव्य कर्म कहलाते हैं I
१५
२ - कर्म शब्द के कुछ पर्याय
जैन दर्शन में जिस अर्थ के लिए कर्म शब्द प्रयुक्त होता है उस अर्थ के अथवा उससे कुछ मिलते-जुलते अर्थ के लिए जैनेतर दर्शनों में ये शब्द मिलते हैं - माया, अविद्या, प्रकृति, पूर्व, वासना, आशय, धर्माधर्म, अदृष्ट, संस्कार, दैव, भाग्य आदि ।
माया, विद्या, प्रकृति ये तीन शब्द वेदान्त दर्शन में पाए जाते हैं । इनका मूलरी -करी वही है, जिसे जैन दर्शन में भाव - कर्म कहते हैं । 'अपूर्व' शब्द मीमांसा दर्शन में मिलता है । 'वासना' शब्द बौद्ध दर्शन में प्रसिद्ध है, परन्तु योग दर्शन में भी उसका प्रयोग किया गया है । 'आशय' शब्द विशेष कर योग तथा सांख्य दर्शन में मिलता है । धर्माधर्म, अदृष्ट और संस्कार, इन शब्दों का प्रयोग और दर्शनों में भी पाया जाता है, परन्तु विशेषकर न्याय तथा वैशेषिक दर्शन में । दैव, भाग्य, पुण्य-पाप आदि कई ऐसे शब्द हैं जो सब दर्शनों के लिए साधारण से हैं। जितने दर्शन आत्मवादी हैं और पुनर्जन्म मानते हैं उनको पुनर्जन्म की सिद्धि-उपपत्ति के लिए कर्म मानना ही पड़ता है। चाहे उन दर्शनों की भिन्न-भिन्न प्रक्रियाओं के कारण या चेतन के स्वरूप में मतभेद होने के कारण कर्म का स्वरूप थोड़ा बहुत जुदा-जुदा जान पड़े; परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि सभी आत्मवादियों ने माया आदि उपर्युक्त किसी न किसी नाम से कर्म को अंगीकार किया ही है ।
३ - कर्म का स्वरूप
मिथ्यात्व, कषाय आदि कारणों से जीव के द्वारा जो किया जाता है वही 'कर्म' कहलाता है । कर्म का यह लक्षण उपर्युक्त भावकर्म व द्रव्यकर्म दोनों में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org