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दीर्घ तपस्वी महावीर महावीर के वर्धमान, विदेहदिन्न और श्रमण भगवान यह तीन नाम और हैं । विदेहदिन्न नाम मातृ पक्ष का सूचक है, वर्धमान नाम सबसे पहिले पड़ा । त्यागी जीवन में उत्कट तप के कारण महावीर नाम से प्रसिद्ध हुए और उपदेशक जीवन में श्रमण भगवान कहलाए । इससे हम भी गृह जीवन, साधक जीवन और उपदेशक जीवन इन तीन भागों में क्रमशः वर्धमान, महावीर और श्रमण भगवान इन तीन नामों का प्रयोग करेंगे। __ महावीर की जन्मभूमि गंगा के दक्षिण विदेह ( वर्तमान विहार प्रान्त ) है, वहाँ क्षत्रियकुण्ड नाम का एक करवा था । जैन लोग उसे महावीर के जन्मस्थान के कारण तीर्थभूमि मानते हैं। जाति और वंश
श्री महावीर की जाति क्षत्रिय थी और उनका वंश नाथ (ज्ञात) नाम से प्रसिद्ध था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था, उन्हें श्रेयांस और यशांस भी कहते थे । चाचा का नाम र पार्श्व था और माता के त्रिशला, विदेहदिन्ना तथा प्रियकारिणी यह तीन नाम थे । महावीर के एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहिन थी। बड़े भाई नन्दीवर्धन का विवाह उनके मामा तथा वैशाली नगरी के अधिपति महाराज चेटक की पुत्री के साथ हुआ था। बड़ी बहिन सुनन्दा की शादी क्षत्रियकुण्ड में हुई थी और उसके जमाली नाम का एक पुत्र था । महावीर स्वामी की प्रियदर्शना नामक पुत्री से उसका विवाह हुआ था। आगे चलकर जमाली ने अपनी स्त्री-सहित भगवान महावीर से दीक्षा भो अंगीकार कर ली थी । श्वेताम्बरों की धारणा के अनुसार महावीर ने विवाह किया था, उनके एक ही पत्नी थी
और उनका नाम था यशोदा । इनके सिर्फ एक ही कन्या होने का उल्लेख मिलता है। ___ ज्ञात क्षत्रिय सिद्धार्थ की राजकीय सत्ता साधारण ही होगी, परन्तु वैभव और कुलीनता ऊँचे दर्जे की होनी चाहिए । क्योंकि उसके बिना वैशाली के अधिपति चेटक की बहिन के साथ वैवाहिक संबन्ध होना संभव नहीं था। गृह-जीवन
वर्धमान का बाल्यकाल बहुतांश में क्रीड़ाओं में व्यतीत होता है। परन्तु जब वह अपनी उम्र में आते हैं और विवाहकाल प्राप्त होता है तब वह वैवाहिक जीवन की ओर अरुचि प्रकट करते हैं। इससे तथा भावी तीव्र वैराग्यमय जीवन से यह स्पष्ट दिखलाई देता है कि उनके हृदय में त्याग के बीज जन्मसिद्ध थे। उनके माता-पिता भगवान् पार्श्वनाथ की शिष्य परम्परा के अनुयायी थे। यह परम्परा निर्ग्रन्थ के नाम से प्रसिद्ध थी और साधारण तौर पर इस परम्परा में त्याग और
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