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ग्रन्थ में आनेवाले दूषणाभास का निर्देश जैन ग्रन्थों में खण्डनीय रूप से भी कहीं देखा नहीं जाता।
श्रा. हेमचन्द्र ने दो सूत्रों में क्रम से जो दूषण और दूषण भास का लक्षण रचा है उसका अन्य ग्रन्थों की अपेक्षा न्यायप्रवेश (पृ०८) की शब्दरचना के साथ अधिक सादृश्य है। परन्तु उन्होंने सूत्र की व्याख्या में जो जात्युत्तर शब्द का अर्थप्रदर्शन किया है वह न्यायबिन्दु ( ३. १४० ) की धर्मोचरीय व्याख्या से शब्दशः मिलता है। हेमचन्द्र ने दूषणाभासरूप से चौबीस जातियों का तथा तीन छलों का जो वर्णन किया है वह अक्षरशः जयत्त की न्यायकलिका (पृ० १६-२१) का अवतरणमात्र है।
श्रा० हेमचन्द्र ने छल को भी जाति की तरह असदुचर होने के कारण जात्युत्तर ही माना है । जाति हो या छल सबका प्रतिसमाधान सच्चे उत्तर से ही करने को कहा है, परन्तु प्रत्येक जाति का अलग-अलग उत्तर जैसा अक्षपाद ने स्वयं दिया है, वैसा उन्होंने नहीं दिया-प्र० मी० २. १. २८, २६ ।
कुछ ग्रन्थों के आधार पर जातिविषयग एक कोष्टक नीचे दिया जाता है
न्यायसूत्र |
उपायहृदय ।
वादविधि, प्रमाण समुच्चय, न्यायमुख, तर्कशास्त्र ।
साधयसम वैधर्म्यसम उत्कर्षकम अपकसम वर्यसम अवण्यसम विकल्पसम साध्यसम प्राप्तिसम श्रप्रातिसम प्रसङ्गसम प्रतिदृष्टान्तसम अनुत्पत्तिसम संशयसम
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