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बाँधकर रहते और जीते हैं। इसे हम चाहे आनुवंशिक संस्कार मानें चाहे. पूर्वजन्मोपार्जित, पर विकसित मनुष्य-जातिमें भी यह सामुदायिक वृत्ति अनिवार्य रूपसे देखी जाती है। जब पुरातन मनुष्य जंगली अवस्थामें था तब
और जब आजका मनुष्य सभ्य गिना जाता है तब भी, यह सामुदायिक वृत्ति एक सी श्रखण्ड देखी जाती है । हाँ, इतना फर्क अवश्य है कि जीवन विकासकी अमुक भूमिका तक सामुदायिक वृत्ति उतनी समान नहीं होती जितनी कि विकसित बुद्धिशील गिने जानेवाले मनुष्यमें है। हम अभान या अस्पष्ट भानवाली सामुदायिक वृत्तिको प्रावाहिक या औधिक वृत्ति कह सकते हैं। पर यही वृत्ति धर्म-बीजका आश्रय है, इसमें कोई सन्देह नहीं । इस धर्म-बीजका सामान्य और संक्षिप्त स्वरूप यही है कि वैयक्तिक और सामुदायिक जीवनके लिए जो अनुकूल हो उसे करना और जो प्रतिकूल हो उसे टालना या उससे बचना। ____ जब हम विकसित मानव जातिके इतिहास-पटपर पाते हैं तब देखते हैं कि केवल माता-पिताके सहारे बढ़ने और पलनेवाला तथा कुटुम्बके वातावरणसे पुष्ट होनेवाला बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है और उसकी समझ जैसे-जैसे बढ़ती जाती है वैसे-वैसे उसका ममत्व और प्रात्मीय भाव माता-पिता तथा कुटुम्ब के वर्तुलसे और भी आगे विस्तृत होता जाता है। वह शुरूमें अपने छोटे गाँवको ही देश मान लेता है। फिर क्रमशः अपने राष्ट्रको देश मानता है और किसी-किसकी समझ इतनी अधिक व्यापक होती है कि उसका ममत्व या श्रात्मीयभाव किसी एक राष्ट्र या जातिकी सीमामें बद्ध न रहकर समग्र मानव जाति ही नहीं बल्कि समग्र प्राणी-वर्गतक फैल जाता है । ममत्व या श्रात्मीय-भावका एक नाम मोह है और दूसरा प्रेम। जितने परिमाणमें ममत्व सीमाबद्ध अधिक, उतने परिमाणमें वह मोह है और जितने परिमाणमें निस्सीम या सीमामुक्त है उतने परिमाणमें वह प्रेम है । धर्मका तत्त्व तो मोहमें भी है और प्रेममें भी। श्रन्तर इतना ही है कि मोहकी दशामें विद्यमान धर्मका बीज तो कभी-कभी विकृत होकर अधर्मका रूप धारण कर लेता है जबकि प्रेम की दशामें वह धर्मके शुद्ध स्वरूपको ही प्रकट करता है ।।
मनुष्य-जातिमें ऐसी विकास शक्ति है कि वह प्रेम-धर्मकी श्रोर प्रगति कर सकती है। उसका यह विकास-बल एक ऐसी वस्तु है जो कभी-कभी विकृत होकर उसे यहाँ तक उलटी दिशामें खींचता है कि वह पशुसे भी निकृष्ट मालूम होती है। यही कारण है कि मानव-जातिमें देवासुर-वृत्तिका द्वन्द्व देखा जाता है। तो भी एक बात निश्चित है कि जब कभी धर्मवृत्तिका अधिकसे अधिक
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