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|| 10 जनवरी 2011
जिनवाणी मिलता है। 4. गले और गर्दन को अलग-अलग स्थितियों में बायें-दायें, ऊपर-नीचे, सभी तरफ जितना सहन हो सके,
तनाव की स्थिति में रख, जितना दीर्घ णमो का उच्चारण कर सके, उतना करने से अथवा उस स्थिति में मौन अट्टाहास करने से गर्दन की जकड़न दूर होती है और गर्दन संबंधी रोग ठीक होते हैं। थायराइड और
पेराथायराइड ग्रन्थियाँ और विशुद्धि चक्र सक्रिय हो बराबर कार्य करने लग जाते हैं। 5. शरीर के असक्रिय, कमजोर भाग पर हथेली से (Clockwise) घड़ी की दिशा में मसाज करने से उस भाग
की सक्रियता बढ़ने लगती है और वे अंग उपांग बराबर कार्य करने लग जाते हैं। इसी प्रकार दर्द, पीडा, खुजली अथवा जलन वाले भाग पर घड़ी की उल्टी दिशा में (Anti Clockwise ) शरीर को स्पर्श करते हुए हथेली को घुमाने से रोग में तुरन्त राहत मिलती है। उदाहरण के लिए पेन्क्रियाज पर घड़ी की दिशा में मसाज करने से मधुमेह तथा पेट पर मसाज करने से कब्जी ठीक होती है तथा दस्त होने की स्थिति में पेट
पर हथेली से घड़ी की उल्टी दिशा में मसाज करने से दस्तें बंद हो जाती है। 6. विधि सहित नियमानुसार भावना पूर्वक वंदना एवं प्रतिक्रमण साधक का नियमित व्यायाम होता है। उग्र
विहारी श्रद्धेय श्री गुणवंत मुनि जी म.सा. के अनुभवों के अनुसार विहार चर्या के पश्चात् वंदना करने से
विहार की थकान दूर होती है। 7. आसन- साधक को यथा संभव सीधी कमर रखकर वज्रासन, पद्मासन एवं सुखासन में ही बैठना
चाहिए। जिससे शरीर का संतुलन बना रहता है एवं वीर्य विकार संबंधी रोग होने की संभावनाएँ कम हो जाती है। गोदुहासन में अपनी क्षमतानुसार बैठने से शरीर का स्नायुतंत्र सक्रिय रहता है और एड़ी, घुटने, पैर एवं पीठ के रोग परेशान नहीं करते। प्राणायाम- सम्यक् प्रकार से श्वसन क्रिया को संचालित एवं नियन्त्रित करने की विधि को प्राणायाम कहते हैं। दो श्वासों के बीच का समय ही जीवन होता है। प्रत्येक व्यक्ति के श्वासों की संख्या निश्चित होती है। जो व्यक्ति आधा श्वास लेता है वह आधा जीवन ही जीता है। प्राणायाम से शरीर में प्राण ऊर्जा उत्प्रेरित, संचारित, नियमित और संतुलित होती है। जिस प्रकार बाह्य शरीर की शुद्धि के लिये स्नान की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार शरीर के आन्तरिक अवयवों की शुद्धि के लिये प्राणायाम का
बहुत महत्त्व होता है। 9. प्रातःकालीन उदित सूर्य देखने से लाभ- सूर्य दर्शन अर्थात् सूर्य को देखना। सूर्योदय के समय
वायुमण्डल में अदृश्य परा बैंगनी किरणों (Ultra Violet Rays) का विशेष प्रभाव होता है. जो विटामिन डी का सर्वोत्तम स्रोत होती है। ये किरणें रक्त में लाल और श्वेत कणों की वृद्धि करती हैं। श्वेत कण बढ़ने से शरीर में रोग प्रतिकारात्मक शक्ति बढ़ने लगती है। परा बैंगनी किरणें तपेदिक, हिष्टिरिया, मधुमेह और महिलाओं के मासिक धर्म-संबंधी रोगों में बहुत लाभकारी होती हैं। ये शरीर में
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