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पुस्तक समीक्षा
: ३४४ (दोनों भाग के)
: वि.सं. २०७३ (ई.स. २०१६)
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: क्षमाकल्याणजी कृति संग्रह
: २
: आर्य मेहुलप्रभसागरजी
: आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट, मांडवला
भाविन के. पण्ड्या
: १००/- (सेट की कीमत)
: खरतरगच्छीय वाचक श्री अमृतधर्म गणि के शिष्य महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी विरचित कृतियों का एक विरल संग्रह
खरतरगच्छाधिपति परम पूज्य आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरिजी के शिष्य आर्य मेहुलप्रभसागरजी द्वारा संकलित एवं संपादित 'क्षमाकल्याण कृति संग्रह' जैन साहित्य जगत के लिए एक अनुपम उपहार स्वरूप है। आर्य मेहुलप्रभसागरजी ने महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी म.सा. के स्वर्गारोहण द्वि- शताब्दी प्रसंग को एक प्रेरणा रूप में ग्रहण किया तथा भारतभर के विभिन्न ज्ञानभंडारों में संगृहीत संबंधित कृतियों का संग्रह करके पूरी मनोज्ञता से संपादित किया और महोपाध्याय क्षमाकल्याणजी के द्विशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में पौष कृष्ण १४ विक्रम संवत् २०७३ को ग्रंथ का विमोचन कराकर विद्वद्जगत के समक्ष प्रस्तुत किया ।
महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी की कृतियों का संपादन मुख्यरूप से पाँच ज्ञानभंडारों की हस्तलिखित प्रतियों के आधार से किया गया- (१) आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा, गांधीनगर, (२) श्री जिनहरिसागरसूरि ज्ञानभंडार, पालीताना, (३) श्री जिनभद्रसूरि ज्ञानभंडार, जैसलमेर, (४) राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुरबीकानेर, (५) लालभाई दलपतभाई भारतीय प्राच्यविद्या संस्थान, अहमदाबाद |
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महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी का समय वि.सं. १८०१ से वि.सं. १८७३ तक का माना जाता है। उन्होनें अपने जीवनकाल में अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियों की रचना की। आचार्य श्री जिनहरिसागरसूरिजी ने जैसलमेर व जयपुर के ज्ञानभंडारों में