________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailass agarsuri Gyanmandir // 42 // // 44|| SHRUTSAGAR November-2016 तिण पुरि निवसै हो आढ्य शिरोमणि, शेठ सुदर्शन नाम। सेवक ते छै हो शुक तापस तणौ, सोच मूल ध्रम धाम आगम निसुणी हो सेठ सुगुरु तणो, आवै पुरी उद्यान / वादी पूछ हो मूल ते धर्म नो, मुनि कहै विनय प्रधान // 43 // गुरु मुख सुणिने हो, धरम सुहामणो, जलशुचिता अप्रमाण / जाणी ने लीधा हो व्रत श्रावक तणां, छांडी प्रथम गुणठाण शुक पिण आवे हो सुणि एह वार्ता, शिष्य सहस संघात / ततखिण जावै हो सेठ घरे तिहां, देखै न आदर वात // 45 // तब शक भाषै हो शेठ भणी इसुं, चालो तुम गुरु पास। प्रश्न पूछीने हो करशुं पारिखा, पाछलि उचित प्रकाश // 46 // इम कही जावे हो सेठ सहित तिहां, पूछ प्रश्न अनेक। गुरु पिण आपै हो उत्तर तेहने, बूझ्यो शुक सुविवेक // 47| सांख्य मत छोडी हो संयम आदर्यो, शिष्य सहस परिवार। श्री गुरु आपै हो ते शिष्य तेहनें, शुक थया पूरब धार थावच्चा पुत्र हो मुनि तदनंतरे, तिहां थी करै विहार / शिष्य सहस नै हो साथे परिवर्या, विचरै देश मझार // 49 // अनक्रमे आव्या हो विमलाचल गिरे, पथिवी सिल पट श्याम / पुंजी ने कीधो हो संथारौ तिहां, मास एक अभिराम केवल पामी हो तिहां मुगते गया, थावच्चा सुत स्वाम। एह संक्षेप हो चारित्र कह्यो इहां, विस्तर ज्ञाता ठांम // 51 // वरस अढारै हो सैतालिसमे, विजयदशमी सुविचार। पूरब देशे हो महिमापुर वरे, एह रच्यो अधिकार // 52 // वाचक गिरूआ हो गुण गण निर्मला, अमृतधर्म सुजाण। मुनि गुण गाया हो आतम हित भणी, सीस क्षमाकल्याण // 53 // // 48 // // 50 // For Private and Personal Use Only