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________________ का प्रतिनिधि शास्त्र है। श्वेताम्बर - परम्परा के आचारांग सूत्र के समान ही दिगम्बर-परम्परा में मूलाचार का बहुमान पुरःसर प्रामाण्य है। मूलाचार के अनेक उल्लेख उत्तराध्ययन सूत्र एवं श्री भद्रबाहु स्वामी की आवश्यक निर्युक्ति के उल्लेखों के साथ शब्दशः एवं अर्थश: मिलते हैं, जो उनकी प्राचीनता एवं प्रामाणिकता के स्पष्टतः उद्घोषक हैं। मूलाचार का सन् 1919 में मुनि अनन्तकीर्ति दिगम्बर ग्रन्थ माला द्वारा प्रकाशित संस्करण, मेरे समक्ष है। पं० श्री मनोहरलालजी शास्त्री का सम्पादन है, हिन्दी टीका है। नवम अनगार भावनाधिकार में मुनि के आहार की चर्चा है। आचार्य वट्टकेर, मुनि के लिए कन्द, मूल, फल आदि अपक्व - कच्चा खाने का निषेध करते हैं, पक्क का नहीं । 'फल- कन्द-मूल बीयं, अणग्गिपक्कं तु आमयं किंचि । णच्चा अणेसणीयं, णवि य पडिच्छन्ति ते धीरा ||825|| " - अग्नि पर नहीं पके, ऐसे फल, कन्द, मूल, बीज तथा अन्य भी जो कच्चा पदार्थ, उसको अभक्ष्य जानकर वे धीर - वीर मुनि खाने की इच्छा नहीं करते। " जं हवदि अणिव्वीयं णिवट्टियं फासूयं कप्पं चेव । णाऊण एसणीयं, तं भिक्खं मुणी पडिच्छंति ॥825।। - जो निर्बीज हो और प्रासुक किया गया हो, ऐसे आहार को खाने योग्य समझ कर मुनिराज उसके लेने की इच्छा करते हैं। उक्त गाथाओं पर से स्पष्ट है कि मुनि कन्द, मूल आदि प्रासुक हों तो उन्हें अशनीय (खाने योग्य) समझ कर आहार में ले सकता है। अनशनीयता के रूप में कन्दमूल का निषेध अपक्वता से सम्बन्धित है, पक्वता से नहीं । दशवैकालिक सूत्र के समान ही यहाँ मूलाचार में भी कन्द, मूल का फल और बीज आदि के साथ सामान्यतया वनस्पति के रूप में उल्लेख है। प्रत्येक वनस्पति से भिन्न, निषेध के लिए अभक्ष्य रूप में पृथक् उल्लेख नहीं है। मैं समझता हूँ, अनाग्रह की यथार्थ दृष्टि के जिज्ञासु, दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही, उक्त आगम कालीन प्राचीन स्पष्ट उल्लेखों पर से कन्द, मूल की कन्दमूल भक्ष्याभक्ष्य मीमांसा 167 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212407
Book TitleKandmul Bhakshya Bhakshya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
Publication Year2009
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size738 KB
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