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________________ तो सारा शरीर ही वर्बाद हो जाता है। एक अँगुली के जहर को निकालकर पूरे शरीर को बचाना होता है। इसके लिए जरूरी होने पर उस विषदिग्ध अंगूली को काटकर शरीर से अलग भी कर दिया जाता है और पूरे शरीर को समाप्त होने से बचा लिया जाता है। अभिप्राय यह है कि एक छोटे अंग का विष, जो पूरे शरीर में फैलकर जीवन को ही नष्ट करने वाला हो, तो उस समय एक हाथ, एक पैर या एक अंगुली को काटे जाने का मोह नहीं किया जाता। यह नहीं सोचा जाता कि उसे काटा जाए या नहीं काटा जाए। स्पष्ट है, सारे शरीर को बचाने के लिए एक अंग को काट दिया जाता है और सारे शरीर को बचा लिया जाता है। इस उदाहरण के संदर्भ में हमारी यह परम्परा है, जैन दर्शन के अनुसार कि जहाँ बड़ी हिंसा होने वाली है, या हो रही है, तो वहाँ छोटी हिंसा का जो प्रयोग है, वह एक प्रकार से अहिंसा का ही रूप है। हिंसा इसलिए है, चूँकि वह एक बड़ी हिंसा को रोकने के लिए है। वह हिंसा तो है, लेकिन इस हिंसा के पीछे दया छिपी हुई है, उसके मूल में करुणा छिपी हुई है और उसके पीछे एक महान् उदात्त भावना है कि यह जो बड़ी हिंसा हो रही है, उसे किसी तरह समाप्त किया जाए। इसी कारण इसको जैन दर्शन के अन्दर आदर दिया गया है। युद्ध और अहिंसा : और नैतिक आदर्श विचार कीजिए कि रावण सीता को चुराकर ले जाता है। और विरोध में सीता के लिए रामचन्द्र जी लंका पर आक्रमण करते हैं। इस प्रकार एक भयंकर युद्ध हो जाता है। प्रश्न केवल एक सीता का है। और उसमें भी सीता को कोई कतल तो नहीं कर रहा था। सीता की कोई हिंसा तो हो नहीं रही थी। लेकिन विचारणीय तो यह है कि किसी को मार देना ही तो हिंसा नहीं कही जाती। बल्कि किसी के नैतिक जीवन को बर्बाद कर देना भी हिंसा है। क्योंकि अनैतिकता अपने आप में स्वयं हिंसा हो जाती हैं विचार कीजिए, रावण ने एक सीता का अपहरण कर जो सामाजिक अन्याय किया है, यदि उस अन्याय को नहीं रोका गया, तो अन्याय जनमानस पर हावी हो जाता है, न्याय की प्रतिष्ठा ध्वस्त हो जाती है, और उसकी देखादेखी भविष्य में और भी अन्याय फैल सकता है। इस दृष्टि से किया गया अन्याय का प्रतिकार धर्म के क्षेत्र में आता है। राजनीति के अन्दर दण्ड की जो परम्परा है, वह भी इसलिए है कि जो अन्याय और अत्याचार का दायरा लम्बा होता है, फैलता जाता है, उस पर नियंत्रण धर्म-युद्ध का आदर्श 79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212402
Book TitleDharmyuddha Ka Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
Publication Year2009
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size951 KB
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