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________________ विश्वकल्याण का चिरंतन-पथ : सेवा का पथ संसार के सभी विचारकों ने मनुष्य को एक महान् शक्ति के रूप में देखा है। मानव की प्रात्मा महान आत्मा है, अनन्त-अनन्त शक्तियों का स्रोत छिपा है उसमें । अण से विराट् बनने का पराक्रम है उसके पास। भगवान् महावीर ने बताया है कि--मनुष्य का जीवन साधारण चीज नहीं है, यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है विश्व की। संसार की समस्त योनियों में आत्मा भटकती-भटकती जब कुछ विशुद्ध होती है, अशुभ कर्मों का भार कुछ कम होता है, तब वह मनुष्य की योनि में आती है "जीवा सोहिमणुप्पत्ता प्राययंति मणुस्सयं ।" कर्म के आवरण जब धीरे-धीरे हटते हैं, तो दिव्य प्रकाश फैलता है, जीवन की यात्रा कुछ आगे बढ़ती है। प्रात्मा पर लगा हुआ मैल ज्यों-ज्यों साफ होता है, त्यों-त्यों वह धीरेधीरे विशुद्ध होती जाती है। अर्थात् जब कुछ प्रकाश फैलता है, कुछ शुद्धि प्राप्त होती है, तब आत्मा मनुष्य की योनि में जन्म धारण करती है। मानव जीवन की महत्ता का यह आध्यात्मिक पक्ष है। सिर्फ जैन दर्शन ही नहीं, बल्कि भारतवर्ष का प्रत्येक दर्शन और प्रत्येक धर्म-सम्प्रदाय इस विचार पर एकमत है कि मानव जीवन पवित्रता के आधार पर चलता है। मानव की चेतना पवित्रता की जितनी उच्च भूमि पर पहुँची हुई होती है, उसका विकास उतना ही उत्कृष्ट होता है। उस पवित्रता को यदि हम कायम रख सके, तो हम मानव रह सकते हैं। यदि उसको उर्ध्वगामी बनाने का प्रयत्न करते हुए आगे बढ़ते हैं, तो मानव से महामानव और आत्मा से परमात्मा के पद तक पहुँच सकते हैं। मानन, जीवन के एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है, जहाँ चारों ओर से आने वाले रास्ते मिलते हैं और चारों ओर जाने वाले भी। यदि वह बढ़ना चाहे, तो पवित्रता के पथ से उस ओर भी बढ़ सकता है, जिधर अनन्त प्रकाश और अनन्त सुख का अक्षय खजाना है, वह अपने जीवन को स्वच्छ एवं निर्मल बनाकर परम पवित्र बन सकता है, नर से नारायण बन सकता है, जन से जिन की भूमिका पर जा सकता है, अविद्या से मुक्त होकर बुद्ध का पद प्राप्त कर सकता है और प्रात्मा से परमात्मा की संज्ञा पा सकता है। यदि वह इस पवित्रता के मार्ग से हटकर संसार के भौतिक मार्ग पर बढ़ चले, तो वहाँ पर भी अपार वैभव एवं ऐश्वर्य के द्वार खोल सकता है। प्रकृति के कण-कण को अपने सुख-भोग के लिए इस्तेमाल कर सकता है, उन पर नियन्त्रण कर सकता है, और जीवन की अभीष्ट सुख-सुविधाओं को प्राप्त कर सकता है। किन्तु, इसके विपरीत भी स्थिति हो सकती है। यदि मानव, विकास की ओर न बढ़ कर विनाश की ओर मुड़ जाता है, तो उसका भयंकर-से-भयंकर पतन भी हो सकता है। पशुयोनि एवं नरक जीवन की घोर यंत्रणाएँ भी उसे भोगनी पड़ सकती है। हर प्रकार से वह दीन, हीन, दुःखी और दलित हो सकता है। विश्वकल्याण का चिरंतन पथ : सेवा-पथ ४२७ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212396
Book TitleVishva Kalyan Ka Chirantan Path Seva Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size710 KB
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