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________________ एक आचार्य कहते हैं :--'नात्मानमवमन्येत ।' अर्थात्--अपनी आत्मा का अपमान मत करो। तुम्हें मनुष्य की जिन्दगी मिली है, तो उसका सदुपयोग करो। यदि तुम्हें देश के नैतिक स्तर को उठाना है, तो जीवन में प्रारम्भ से ही ऊँचे संस्कार डालो। अच्छे संस्कार केवल पोथियाँ पढ़ने से नहीं, सत्संगति से ही प्राप्त होते हैं। अतएव पढ़ने-लिखने से जो समय बचे, उसे श्रेष्ठ सदाचारी पुरुषों और सन्तों के सम्पर्क में लगाना चाहिए। छात्र और चलचित्र: आजकल अधिकांश विद्यार्थियों का संध्या का समय प्रायः चलचित्र देखने में व्यतीत होता है। चारों ओर आज चलचित्रों की धूम मची है। स्वीकार करना चाहिए कि सिनेमा से लाभ भी उठाया जा सकता है, परन्तु हमारे यहाँ जो फिल्में आजकल बन रही है, वे जनता को लाभ पहुंचाने की बात तो दूर, उलटे उसकी जगह हानि ही ज्यादा पहुँचाती हैं। उनसे समाज में बहुत सी बुराइयाँ फैली हैं और आज भी फैल रही है। प्रायः बाजारू प्रेम के किस्से और कुरुचिपूर्ण गायन तथा नत्य आदि के प्रदर्शन बालकों के अपक्व मस्तिष्क में जहर भरने का काम कर रहे हैं। छोटे-छोटे अबोध बालक और नवयुवक जितना इन चित्रों को देखकर बिगड़ते हैं, उतना शायद किसी दूसरे तरीके से नहीं बिगड़ते। यूरोप आदि देशों में बालकों को सहज रूप में विविध विषयों की शिक्षा देने के लिए चलचित्रों का उपयोग किया जाता है। वहाँ के समाज ने इस कला का सदुपयोग किया है। परन्तु, हमारे यहाँ इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। खेद है, कि स्वतन्त्र भारत की सरकार भी, जिससे इस विषय में सुधार की आशा की जाती थी, इस ओर कोई सक्षम एवं उपयुक्त कार्य नहीं कर रही है। __ एक तरफ सरकार इधर ध्यान नहीं दे रही है और दूसरी तरफ फिल्म निर्माता अपना उल्लू सीधा करने में लगे हए हैं। सब अपने-अपने स्वार्थ-साधन में संलग्न हैं। ऐसी स्थिति में, हम नवयुवकों से ही कहेंगे कि वे पैसे देकर बुराइयों न खरीदें। अपने जीवन-निर्माण के इस स्वर्ण-काल को सिनेमा देख-देख कर और उनसे कुत्सित-संस्कार ग्रहण कर अपने ही हाथों अपना सर्वनाश न करें। छात्रों का महान कर्तव्य : विद्यार्थी सब प्रकार के दुर्व्यसनों से बच कर अध्ययन एवं चिन्तन-मनन में ही अपने समय का सदुपयोग करें। अपने जीवन को नियमित बनाने का प्रयास करें। समय को व्यर्थ नष्ट न करें। इसी में उनका कल्याण है। असफलताओं से घबराना जिन्दगी का दुरुपयोग करना है। तुम्हारा मुखमंडल विपत्तियाँ पाने पर भी हँसता हुआ होना चाहिए। तुम मनुष्य हो। तुम्हें हँसता हुआ चेहरा मिला है। फिर क्या बात है कि तुम नामर्द, डरपोक, एवं उदास दिखाई देते हो? क्या पशों को कभी हँसते देखा है? शायद कभी नहीं। सिर्फ मनष्य को ही प्रकृति की ओर से हँसने का वरदान मिला है। अतएव कोई भी काम करो, वह सरल हो या कठिन, मुस्कराते हुए करो। घबरानो मत, ऊबो मत । तुम्हें चलना है, रुकना नहीं। चलना ही गति है, जीवन है और रुक जाना अगति है, मरण है। विनम्रता : लक्ष्यपूर्ति का मूलमन्त्र : ___तुम्हारा गन्तव्य अभी दूर है। वहाँ तक पहुँचने के लिए हिम्मत, साहस एवं धैर्य रखो और आगे बढ़ते जाओ। नम्रता रख कर, विनयभाव और संयम रख कर चलते चलो। अपने हृदय में कलुषित भावनाओं को मत आने दो। क्षण भर के लिए भी हीनता का भाव अपने ऊपर मत लाओ। अपने महत्त्व को समझो। विद्यार्थी जीवन : एक नव-अंकुर ३७६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212390
Book TitleVidyarthi Jivan Ek Navankur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages15
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size1 MB
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